नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन (Talaq e Hassan) अनुचित नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ता से सहमत नहीं है क्योंकि महिलाओं के पास भी खुला का विकल्प मौजूद है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी। उल्लेखनीय है कि तीन तलाक को भारत में असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पत्रकार बेनजीर हिना की ओर से एक लिट याचिका दायर की गई है। हिना का आरोप है कि आरोप है कि 19 अप्रैल को उसके पति ने पहली बार तलाक भेजा, इसके मई और जून में उसे दूसरी और तीसरी बार तलाक दिया गया। महिला का कहना है इस तरह का तलाक सिर्फ पुरुष ही दे सकते हैं। ऐसे में तलाक-ए-हसन पूरी तरह से महिलाओं के साथ भेदभाव है।
क्या कहा अदालत ने : सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदर्श ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन अनुचित नहीं है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के पास भी खुला (तलाक) का विकल्प मौजूद है। अत: वे याचिकाकर्ता की दलील से सहमत नहीं हैं। न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि बिना किसी कारण इसे एजेंडा नहीं बनाना चाहते। हिना ने तलाक-ए-हसन की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए इसे भेदभावपूर्ण बताया है।
वहीं, याचिकाकर्ता की वकील पिंकी आनंद ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट पहले ट्रिपल तलाक को अंसवैधानिक घोषित कर चुका है। ऐसे में तलाक-ए-हसन का मामला अभी तक अनसुलझा है।
गाजियाबाद की रहने वाली हिना ने मई माह में एक याचिका दायर की थी। हिना का कहना है कि तलाक-ए-हसन संविधान के खिलाफ है। मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 में एकतरफा तलाक देने का हक सिर्फ पुरुषों को ही है। बेनजीर ने कोर्ट से मांग की कि केंद्र सरकार सभी धर्मों की महिलाओं और पुरुषों के लिए एक समान तलाक का कानून बनाए।
क्या है तलाक-ए-हसन? : तलाक-ए-हसन मुस्लिम विधि में शादी को तोड़ने का एक तरीका है। हालांकि यह पुरुष ही कर सकता है। तलाक-ए-हसन में भी मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को 3 बार तलाक कहता है। यह एक साथ नहीं होकर तीन माह में होता है।
पहला तलाक पहले महीने, दूसरा तलाक दूसरे महीने एवं तीसरा एवं अंतिम तलाक तीसरे महीने कहा जाता है। इसके बाद पति-पत्नी के बीच संबंध विच्छेद हो जाता है। हालांकि इन तीन महीनों में अगर दोनों के बीच संबंध फिर से ठीक हो जाते हैं तो उन्हें फिर से निकाह की जरूरत नहीं पड़ती। उनकी शादी बनी रहती है, लेकिन तीनों तलाक होने के बाद शादी टूटी हुई मानी जाती है।
इस तरह के तलाक को तीन तलाक का उदार रूप कहा जा सकता है। क्योंकि कई बार पुरुष द्वारा गुस्से या आवेश में तीन तलाक कहने पर महिला-पुरुष के संबंध टूट जाते थे, लेकिन तलाक-ए-हसन में दोनों पक्षों के पास तीन महीने का वक्त होता है और वे इस अवधि में आपसी मतभेदों को दूर कर सकते हैं।
क्या है खुला? : जैसा कि शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के पास खुला का विकल्प मौजूद है। इसके तहत कोई भी मुस्लिम महिला अपने पति के साथ संबंध विच्छेद कर सकती है। वह पति से तलाक मांग सकती है। यदि किसी महिला को लगता कि वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो वह खुला का विकल्प अपना सकती है। यदि पति तलाक के लिए सहमत नहीं है तो महिला दारूल कदा के सामने अपनी परेशानी रख सकती है। सुनवाई के बाद काजी तलाक की अनुमति दे सकते हैं। खुला तलाक में अगर निकाह के समय मौजूद रहने वाले गवाह नहीं भी हैं तो भी तलाक हो सकता है।
2017 में लगी थी 3 तलाक पर रोक : उल्लेखनीय है कि साल 2017 में शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में ट्रिपल तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसमें मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को एक बार में ही तीन बार तलाक बोलता था और शादी खत्म हो जाती थी। इस तरह के तलाक छोटी-छोटी बातों पर हो जाते थे। मोबाइल पर भी इस तरह के तलाक हो जाते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस तरह के तरह के तलाक कानूनन अवैध हैं।