नई दिल्ली। सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच शनिवार को 5वें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही, जहां किसान संगठनों के नेता नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े रहे और इस मुद्दे पर सरकार से 'हां' या 'नहीं' में जवाब की मांग करते हुए 'मौन व्रत' पर चले गए। इसके बाद केंद्र ने गतिरोध समाप्त करने के लिए 9 दिसंबर को एक और बैठक बुलाई है।
3 केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ 4 घंटे से अधिक देर तक चली बातचीत के बाद किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ने इस मुद्दे के समाधान के लिए अंतिम प्रस्ताव पेश करने के वास्ते आंतरिक चर्चा के लिए और समय मांगा है। हालांकि, केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार बैठक में मौजूद 40 कृषक नेताओं से उनकी प्रमुख चिंताओं पर ठोस सुझाव चाहती थी। उन्होंने उम्मीद जताई कि उनके सहयोग से समाधान निकाला जाएगा।
किसानों ने 8 दिसंबर को 'भारत बंद' की घोषणा की है और चेतावनी दी है कि यदि सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती तो आंदोलन तेज किया जाएगा तथा राष्ट्रीय राजधानी आने वाले और मार्गों को अवरुद्ध कर दिया जाएगा। ट्रेड यूनियनों और अन्य अनेक संगठनों ने इसमें उन्हें समर्थन जताया है।
बैठक में कृषिमंत्री तोमर ने किसान नेताओं से बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को प्रदर्शन स्थलों से घर वापस भेजने की अपील की। तोमर ने सरकार की ओर से वार्ता की अगुवाई की। इसमें रेल, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने भी भाग लिया। बैठक के बाद कृषिमंत्री ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद जारी रहेगी और मंडियों को मजबूत किया जाएगा।
तोमर ने कहा कि हम कुछ प्रमुख मुद्दों पर किसान नेताओं से ठोस सुझाव चाहते थे, लेकिन आज की बैठक में ऐसा नहीं हुआ। हम 9 दिसंबर को एक बार फिर मिलेंगे। हमने उनसे कहा है कि सरकार उनकी सभी चिंताओं पर ध्यान देगी और हमारा प्रयास समाधान खोजने का रहेगा।
उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने आज ही सुझाव दिए होते तो आसानी होती। हम उनके सुझावों का इंतजार करेंगे।
तोमर ने किसानों के आंदोलन में अनुशासन बनाकर रखने के लिए किसान संगठनों का शुक्रिया अदा किया। हालांकि, उन्होंने प्रदर्शन का रास्ता छोड़कर संवाद में शामिल होने की अपील की। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार किसानों के हित के लिए हमेशा प्रतिबद्ध है और रहेगी।
सूत्रों ने बताया कि प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के साथ महत्वपूर्ण बैठक से पहले तीनों मंत्रियों ने वरिष्ठ मंत्रियों राजनाथ सिंह और अमित शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और प्रदर्शन कर रहे समूहों के सामने रखे जाने वाले संभावित प्रस्तावों पर विचार-विमर्श किया। किसानों ने अपनी मांगें नहीं माने जाने पर आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है।
सितंबर में लागू तीनों कृषि कानूनों को सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़ा सुधार करार दिया है। वहीं प्रदर्शनकारी किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था को समाप्त कर देंगे। हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने चिंता जताई है कि नए कानून एमएसपी और मंडियों को समाप्त करने का रास्ता साफ करेंगे।
विज्ञान भवन में हुई बैठक में किसान नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार सितंबर में लागू तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के बारे में नहीं सोच रही तो वे बैठक छोड़कर चले जाएंगे। ब्रेक में किसान नेताओं ने अपने साथ लाया भोजन और जलपान किया, जैसा उन्होंने बृहस्पतिवार को किया था। हालांकि, सरकार किसान नेताओं को वार्ता जारी रखने के लिए मनाने में सफल रही।
सरकार के साथ 5वें दौर की बातचीत में किसानों का समूह करीब एक घंटे तक 'मौन व्रत' पर रहा और उसने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मुख्य मांग पर 'हां' या 'नहीं' में जवाब मांगा। बैठक में मौजूद कुछ किसान नेता अपने होठों पर अंगुली रखे हुए और 'हां' या 'नहीं' लिखा कागज हाथ में लिए हुए दिखे। सूत्रों के मुताबिक मंत्रियों द्वारा रखे गए कुछ प्रस्तावों पर बैठक में भाग लेने वाले किसानों के बीच मतभेद भी सामने आया।
बैठक के बाद बीकेयू एकता (उगराहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा कि सरकार ने कानूनों में कई संशोधनों की पेशकश की है लेकिन हम चाहते हैं कि कानूनों को पूरी तरह निरस्त किया जाए। भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के महासचिव ओंकार सिंह अगोल ने कहा कि हम 'मौन व्रत' पर थे क्योंकि सरकार कानून वापस लेने या नहीं लेने पर स्पष्ट जवाब नहीं दे रही थी।
एक किसान नेता ने कहा कि सरकार ने उनसे कहा कि पहले वे किसानों के प्रतिनिधियों को प्रस्ताव भेजेंगे और वे प्रस्तावों पर विचार-विमर्श करने के बाद ही अगली बैठक में शिरकत करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि किसान नेताओं ने अपनी मांगों पर पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया है, लेकिन उन्हें गतिरोध को समाप्त करने के लिहाज से सरकार के रवैए में बदलाव नजर आया।
बाद में ऑल इंडिया किसान सभा ने एक बयान में कहा कि वह बातचीत लंबे समय तक खिंचने की निंदा करती है। संगठन ने आरोप लगाया कि सरकार कॉर्पोरेट के इशारे पर काम कर रही है। एक अन्य सूत्र ने कहा कि सरकार ने पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों और कुछ किसान कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की पेशकश भी की। मंत्रियों ने शाम को बैठक स्थल पर मौजूद कुल 40 किसान प्रतिनिधियों में से 3-चार किसान नेताओं के छोटे समूह के साथ बातचीत पुन: शुरू की।
सूत्रों के अनुसार केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अनेक किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के समूह से कहा कि सरकार सौहार्दपूर्ण बातचीत के लिए प्रतिबद्ध है और नए कृषि कानूनों पर उनके सभी सकारात्मक सुझावों का स्वागत करती है। बाद में केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री और पंजाब से सांसद सोम प्रकाश ने पंजाबी में किसान नेताओं को संबोधित किया और कहा कि सरकार पंजाब की भावनाओं को समझती है।
एक सूत्र के अनुसार सोमप्रकाश ने किसान नेताओं से कहा कि हम खुले दिमाग से आपकी समस्त चिंताओं पर ध्यान देने को तैयार हैं। बैठक स्थल से बाहर 'इंडियन टूरिस्ट ट्रांसपोर्टर्स एसोसिएशन' (आईटीटीए) के कर्मचारियों को 'हम किसानों का समर्थन करते हैं' लिखे बैनर लहराते और नारे लगाते हुए देखा गया। इस संगठन ने प्रदर्शनकारी किसानों की आवाजाही के लिए वाहनों की सुविधा प्रदान की है।
बृहस्पतिवार को भी दोनों पक्षों के बीच बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला था। पहले दौर की बातचीत अक्टूबर में हुई थी लेकिन किसान नेताओं ने किसी मंत्री के मौजूद नहीं रहने की वजह से इसका बहिष्कार किया। तेरह नवंबर को दूसरे दौर की बातचीत हुई। इसके बाद पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों द्वारा राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर डेरा डालने के बाद आगे के दौर की बातचीत हुई। (भाषा)