नई दिल्ली। कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे किसान कड़ाके की ठंड में 23 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। विपक्षी दल भी इस मामले में उनके साथ नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार कानून में संशोधन के लिए तो तैयार है पर किसी भी हाल में अपने कदम वापस नहीं लेना चाहती। दोनों पक्षों में अब तक 6 दौर की बातचीत के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल सका है। किसान आंदोलन में अब तक क्या हुआ... पढ़िए कंपलिट राउंड अप...
प्रदर्शन के दौरान अब तक 21 किसान हो गए 'शहीद' : किसान नेताओं ने कहा- अब तक विरोध प्रदर्शन के दौरान करीब 21 किसान शहीद हो गए। प्रदर्शन शुरू होने के बाद से हर दिन औसतन एक किसान की मौत हुई। प्रदर्शनस्थल पर इन किसानों की मौत ने प्रदर्शनकारियों के गुस्से को और बढ़ा दिया है। किसान नेता इंद्रजीत ने बताया कि आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को लोग 20 दिसंबर को गांवों, प्रखंडों में श्रद्धांजलि दी जाएगी।
यह रास्ते बंद : हजारों किसान दिल्ली से लगी सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। सिंघू बॉर्डर पर 23 दिन से प्रदर्शन जारी है तो टिकरी बॉर्डर, चिल्ला बॉर्डर, कुंडली बॉर्डर आदि स्थानों पर भी किसान कई दिनों से डटे हुए हैं। अब दिल्ली बॉर्डर से इतर भी किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में कई रास्तों पर किसान डटे हुए हैं, दिल्ली जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी प्रदर्शनकारी किसान मौजूद है। अब बागपत में भी दिल्ली-यमनौत्री राष्ट्रीय राजमार्ग को ठप करने की तैयारी है।
रोज 3500 करोड़ रुपए का नुकसान : किसान आंदोलन की वजह से पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों पर बुरा असर पड़ा है। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम (Assocham) के अनुसार, इस आंदोलन के चलते हर रोज करीब 3500 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
तकनीक ने आसान की किसानों की राह : गुरुद्वारा समितियों और एनजीओ ने यह सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी संसाधन उपलब्ध कराए हैं कि मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण आंदोलन प्रभावित न हो। घंटे में 1,000 से 1,200 रोटियां बनाने वाली मशीन, कपड़े धोने की मशीनें और मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए ट्रैक्टर-ट्रॉलियां पर लगाए गए सौर पैनल जैसे तकनीकी संसाधन यह सुनिश्चित कर रहे हैं, प्रदर्शनकारियों की मुश्किलें कम की जा सकें। सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों के पैरों की मालिश के लिए मशीनें एवं गीजर भी लगाए गए हैं।
क्या है सरकार का प्लान : दूसरी तरफ सरकार का दावा है कि देशभर के किसान कृषि कानून के समर्थन में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके सभी मंत्री आम किसानों के बीच पहुंचकर उन्हें कृषि बिल के फायदे समझाने में जुटे हैं। अब आंदोलनकारी किसान संगठनों से इतर कई ऐसे संगठन भी सामने आकर नए कृषि बिलों के समर्थन में बयान दे रहे हैं।
सुलह के प्रयास : आंदोलन में मुख्यत: पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान से जुड़े 500 से ज्यादा किसान शामिल है। सरकार किसान संगठनों से अपने स्तर पर अलग अलग भी बातचीत कर रही है। शिवकुमार कक्काजी, राकेश टिकैत जैसे प्रमुख किसान नेताओं को साधकर वह आंदोलन समाप्त करवाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। हालांकि इसमें उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली है। सरकार ने आंदोलन को राजनीतिक बताने का भी प्रयास किया। उसे खालिस्तान समर्थकों से जोड़ने की कोशिश की गई। हालांकि किसान टस से मस नहीं हुए और अभी भी प्रदर्शनस्थल पर जुटे हुए हैं। देशभर से कई किसान संगठनों का उन्हें समर्थन भी मिल रहा है।
कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की किसानों को चिठ्ठी : केंद्रीय कृषिमंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने 17 दिसंबर को दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से आग्रह किया कि वे राजनीतिक स्वार्थ के लिए 3 कृषि कानूनों के खिलाफ फैलाए जा रहे भ्रम से बचें। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और किसानों के बीच झूठ की दीवार खड़ी करने की साजिश रची जा रही है। कृषि मंत्री ने कहा कि विपक्ष किसानों में भ्रम पैदा कर रहा है। किसानों को गुमराह करने वाले 1962 की भाषा बोल रहे हैं। कृषि मंत्री ने 8 पेज की चिट्ठी लिखी, जिसमें 8 आश्वासन दिए गए हैं।
किसानों पर भारी पड़ती राजनीति : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 17 दिसंबर को विधानसभा में केंद्र के कृषि से संबंधित तीनों नए कानूनों की प्रतियों को फाड़ते हुए कहा कि वे देश के किसानों के साथ छल नहीं कर सकते। दिल्ली विधानसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि कानूनों को भाजपा के चुनावी 'फंडिंग' के लिए बनाया गया है और यह किसानों के लिए नहीं है। केजरीवाल ही नहीं कांग्रेस, शिरोमणी अकाली दल, सपा समेत सभी राजनीतिक दल अपनी जमीन तलाशने के मौके के रूप में इस आंदोलन को देख रहे हैं।
समर्थन में सिख संत ने गोली मारकर आत्महत्या की : केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में सिंघू बॉर्डर के निकट प्रदर्शन कर रहे किसानों का समर्थन कर रहे एक सिख संत ने बुधवार को कथित रूप से आत्महत्या कर ली। पुलिस ने यह जानकारी दी।
पुलिस ने कहा कि मृतक ने कथित रूप से पंजाबी में हाथ से लिखा एक नोट भी छोड़ा है जिसमें कहा गया है कि वह किसानों का दर्द सहन नहीं कर पा रहा है।
महिलाओं की भूमिका : आंदोलनस्थल पर 2000 से ज्यादा महिलाएं भी डटी हुई है। इनमें से कुछ महिलाएं तो प्रदर्शनस्थल के साथ ही खेत और घर भी संभाल रही है। किसानों ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। प्रदर्शनस्थल पर निहंगों की तैनाती भी की गई है।
MSP पर क्यों है विवाद : सरकार भले ही MSP और मंडियों के समाप्त नहीं होने देने की बात कर रही हो लेकिन अभी तक उसने किसानों को लिखित में कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है। सरकार की इसी टालमटोली की वजह से किसान भी बिल वापस लेने की मांग पर अड़ गए। विपक्षी दल संसद के शीतकालिन सत्र में इस पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे थे लेकिन कोरोना की वजह से सत्र ही स्थगित कर दिया गया।
जामिया के छात्रों से दूरी : केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों ने 14 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह को यूपी गेट (गाजियाबाद)-गाजीपुर (दिल्ली) सीमा पर अपने प्रदर्शन में शामिल होने से रोक दिया।
कोरोना की जांच नहीं करवा रहे हैं आंदोलनरत किसान : प्रदर्शन स्थलों पर कोरोनावायरस महामारी के साए के मद्देनजर सोनीपत जिला प्रशासन केंद्र के नए कृषि कानूनों के विरोध में डेरा डाले किसानों को जांच सुविधा की पेशकश कर रहा है लेकिन उनमें से ज्यादातर जांच कराने को अनिच्छुक हैं। उन्हें डर है कि संक्रमित पाए जाने पर उन्हें क्वारंटाइन कर दिया जाएगा और इससे उनका आंदोलन कमजोर पड़ेगा।
किसानों के बड़े प्रदर्शन : आंदोलनकारियों ने भारत बंद बुलाने के साथ ही एक दिन की भूख हड़ताल और टोल प्लाजा फ्री करने जैसे कई बड़े आयोजन भी किए हैं। इन सब का मकसद सरकार पर दबाव बनाना था। हालांकि किसानों के इन प्रदर्शनों का सरकार पर ज्यादा असर नहीं हुआ उलटा मोदीजी के मंत्रियों ने कृषि बिल के फायदे गिनाने के लिए बड़ा अभियान छेड़ दिया।
अमरिंदर ने आंदोलन को बताया राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा : पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 5 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कहा कि किसान आंदोलन जारी रहा तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं का हल निकलना चाहिए। सीएम सिंह ने कहा- पंजाब की अर्थव्यवस्था पर भी आंदोलन का असर हो रहा है।
पानी की बौछार से भड़के किसान : केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के कृषि बिल के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। 18 दिसंबर को पानी की तेज बौछार और आंसू गैस के गोलों से उठता धुआं भी प्रदर्शनकारी किसानों का मनोबल नहीं तोड़ पाया। कई अन्य संगठनों ने भी किसानों की मांगों का समर्थन किया है।