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टिकैत के आंसुओं ने सरकार के मनसूबों पर फेरा पानी, गांव से बड़ी संख्या में पानी लेकर पहुंचे किसान

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हिमा अग्रवाल

, शुक्रवार, 29 जनवरी 2021 (12:34 IST)
गाजीपुर। राकेश टिकैत के आंसू एक बार फिर से उस समय छलक आयें, जब सिसौली गांव के किसान उनके लिए पानी लेकर पहुंचे। राकेश के आंसुओं को आंदोलन का यू टर्न माना जा रहा है। क्योंकि बीते कल गाजीपुर बार्डर पर प्रशासन की सख्ती के चलते धरना समाप्ति की तरफ था।
 
अचानक मंच से टिकैत ने धरना जारी रखने की घोषणा करते हुए कहा कि वह गोली-लाठी खाने को तैयार है धरना खत्म करने को नही। मीडिया से रूबरू होते हुए टिकैत का दर्द आंसुओं में नजर आया। उनकी बेबसी और आंसू के बाद किसानों ने फिर से गाजीपुर बार्डर का रूख कर लिया है। अपने पैतृक गांव से पानी, मट्ठा और साथियों को देखकर राकेश टिकैत भावुक हो गए है। गाजीपुर बार्डर अब किसान आंदोलन का केंद्र बन गया है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत धरना जारी रखने की घोषणा के बाद अब राजनीतिक दलों का समर्थन भी खूब मिल रहा है। गाजीपुर बॉर्डर पर शुक्रवार प्रात बेला से बड़ी संख्या में किसानों ने पहुंचना शुरू कर दिया है। किसानों की बढ़ती भीड़ को देखकर प्रशासन अब बैकफुट पर आ गया है।
 
वही मुजफ्फरनगर में किसानों की एक विशाल महापंचायत राजकीय कालेज में चल रही है। जिसमें खाप चौधरी और नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ है। बालियान खाप चौधरी ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि आंदोलन अब दम नहीं तोड़ेगा, यदि सरकार बिना जांच के सख्ती करती है, टिकैत और समर्थकों की गिरफ्तारी होगी तो आंदोलन स्थल पर हमारी लाशें बिछ जाये, लेकिन कानून वापस होने तक डटे रहेंगे।
राष्ट्रीय लोकदल के सुप्रीमो अजीत सिंह ने समर्थन देते हुए कहा कि ये आंदोलन किसानों के जीवन-मरण का प्रश्न है। हमारी पार्टी किसान आंदोलन के साथ है। रालोद का संदेश लेकर जयंत चौधरी सुबह ही गाजीपुर बार्डर पर पहुंच गए और बोले हम चौधरी चरण सिंह के अनुयायी है, बाबा चरण सिंह हमेशा कौम के लिए लड़े है और हम भी कौम के साथ है, यानी किसानों के हर निर्णय को हमारा समर्थन है।
 
जय जवान, जय किसान के नारों के साथ दिल्ली के डिप्टी सीएम से मनीष सिसौदिया भी किसानों के आंदोलन में पहुंचे है। आप पार्टी ने भी किसान आंदोलन को समर्थन दे दिया है। वही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का समर्थन पहले ही इस आंदोलन को मिल रहा है या यह भी कहा जा सकता है किसानों के बहाने राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंक रही है।

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