सोनीपत/ नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों को लेकर अपनी लड़ाई लड़ रहे किसानों ने मांगें मनवाने के उपरांत 380वें दिन दिल्ली की सीमाओं से वापस घर की ओर लौटे।
वापसी से पहले किसानों ने धरनास्थल पर जमकर जश्न मनाया और जीत के नारों व धूम धड़ाके के बीच फतेह मार्च निकाला। पंजाब के किसानों को विजयी विदाई देने के लिए केजीपी-केएमपी के जीरो प्वाइंट पर भारी संख्या में स्थानीय ग्रामीणों के अलावा दूर-दूराज से भी किसान पहुंचे।
इस दौरान किसानों पर पुष्प वर्षा की गई। इससे पहले करीब दो घंटे तक खासकर युवा किसान डीजे व ढ़ोल की थाप पर जमकर थिरके। बाद में लंगर का आयोजन किया गया। ट्रैक्टर-ट्रालियों पर पूरा दिन अलग-अलग जत्थों में किसान रवाना होते रहे, जिसके कारण जीटी रोड पर रह-रहकर लंबा जाम लगा रहा। कुंडली बार्डर से लेकर गन्नौर तक ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, कारों व जीपों के काफिले के कारण माहौल देखते ही बनता था।
9 दिसबर को सरकार की ओर से मांगों को स्वीकार किए जाने के बारे में आधिकारिक पत्र मिलने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन को स्थगित कर दिया था। सीडीएस बिपिन रावत के निधन के चलते शुक्रवार को उनकी अंत्येष्टि तक जश्न को टाल दिया और तय किया था कि 11 दिसंबर, शनिवार को किसान जश्न मनाते हुए अपने घरों की ओर रवाना होंगे। किसानों की संख्या अधिक होने के कारण जाम से बचने के लिए उन्हें अलग-अलग जत्थों में रवाना करने का कार्यक्रम निर्धारित किया गया था।
तय कार्यक्रम के अनुसार पहले दिन शनिवार को सुबह साढ़े आठ बजे किसान अपने सामान लदे वाहनों के साथ जीटी रोड पर केजीपी-केएमपी जीरो प्वाइंट के पास जमा हो गए। सबसे पहले अरदास की गई। उसके बाद शुरू हुआ जश्न दौर। डीजे से लेकर ढोल की थाप पर पर युवा, बुजुर्ग, महिलाएं व बच्चे जमकर थिरके। इस बीच किसानों पर पुष्प वर्षा की गई।
खास बात यह रही कि किसानों ने अपने हर वाहन पर ठीक उसी तरह से किसानी झंडे लगाए हुए थे, जैसे आंदोलन की शुरूआत में यहां आते हुए लगाए थे। मगर इस बार जीत की नारेबाजी के चलते माहौल बदला-बदला रहा। किसानों ने किसान एकता व किसानों की जीत के जमकर नारे लगाए। यही नहीं, किसानों ने उन लोगों का भी धन्यवाद किया जिन्होंने आंदोलन में उनका सहयोग कर किया। पिछले दो दिनों के दौरान स्थानीय लोगों का आभार जताने के लिए किसान उनके घरों तक भी गए।
धरनास्थल से किसानों ने अपनी झोंपडिय़ां व टेंट हटाने के बाद कूलर, हीटर, बचा राशन व अन्य सामान आसपास के मजदूरों व जरूरतमंदों को सौंपते हुए दरियादिली भी दिखाई।
किसानों ने बताया कि उनके पास बहुत सा सामान ऐसा था जो वे वापस नहीं ले जाना चाहते थे और उन लोगों को देना चाहते थे जो सालभर से आंदोलन में उनके मददगार रहे हैं। इतना ही नहीं इन लोगों ने बॉर्डर पर किसानों के साथ लंगर में काम किया है। किसानों का कहना था कि अब उनका फर्ज बनता है कि उनकी कोई मदद की जाए। किसानों ने कुछ बर्तन व रोजमर्रा का सामान भी जरूरमंदों को दिया।
निहंग सिख भी किसानों के साथ ही रवाना हुए। इससे पहले उन्होंने कुंडली बॉर्डर पर घोड़ों के साथ जमकर करतब दिखाए। निहंग सिखों ने गुरू साहेब की सभी पालकियां अदब के साथ रवाना की और खुद उनके पीछे चले। इस दौरान गुरू साहेब के जयकारे भी लगाए गए। निहंग सिख जत्थेदारियों ने इस दौरान फतेह के नारे लगाए और अरदास भी की। जत्थेदार बाबा राजाराज सिंह ने बताया कि वे किसानों के साथ आए थे और अब किसानों के साथ ही रवाना हो रहे हैं। गुरु साहेब की पालकियों को कीर्तन पाठ के साथ दरबार साहेब में ले जाया जाएगा।
गरीबों को सताने लगी खाने और घर की चिंता : दिल्ली-हरियाणा के सिंघू सीमा पर हजारों किसानों ने अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया और लंगर बंद कर दिया, जिसके बाद से 13 वर्षीय आर्यन को अब अपने दो जून की रोटी की चिंता सता रही है।
आर्यन कोई अकेला नहीं, बल्कि उसकी तरह कई लोग हैं, जो किसानों द्वारा स्थापित सामुदायिक रसोई में भोजन करते थे और एक साल से अधिक के विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके द्वारा लगाए गए तंबुओं में सोते थे। शनिवार की सुबह झुग्गीवासियों सहित बड़ी संख्या में बच्चों और स्थानीय गरीबों ने किसानों के लंगर पर आखिरी बार नाश्ता किया।
कुंडली की झुग्गियों में रहने वाला 13 वर्षीय आर्यन ने पीटीआई को बताया कि हम अपना नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना यहीं लंगर में करते थे। आज लंगर में यह हमारा आखिरी नाश्ता है। अब, हमें या तो खुद खाना बनाना होगा या अन्य विकल्पों की तलाश करनी होगी।
किसानों ने कहा कि उनके मन में भी ऐसे स्थानीय बच्चों के लिए भावनाएं पैदा हो गई थीं, जो विरोध स्थल पर आते थे और उन्हें अपने ही बेटों और पोते की याद दिलाते थे। मोहाली के सतवंत सिंह ने कहा कि ये बच्चे हमारे विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा बन गए थे, क्योंकि वे यहां भोजन के लिए आया करते थे। उन्होंने मुझे मेरे पोतों की याद दिला दी थी। उन्हें यहां रखना अच्छा लगता था। अब ईश्वर उनकी रक्षा करेंगे।
मलिन बस्तियों के निवासी आमतौर पर इस क्षेत्र में कारखानों या गोदामों में काम करते हैं। किसानों द्वारा बनाए गए अस्थायी टेंटों में रहने वाले बेघर लोगों को अपने रहने की व्यवस्था को लेकर चिंता सता रही थी।
बिहार के सुपौल के 38 वर्षीय मोनू कुशवाहा ने कहा कि किसानों के विरोध-प्रदर्शन के लिए सिंघू सीमा पर आने से पहले, वह फुटपाथ पर सोता थे, लेकिन पिछले साल आंदोलन शुरू होने के बाद हालात बदल गये थे।
कुशवाहा ने अफसोस जताते हुए कहा, "किसानों के आंदोलन के दौरान, मैं उनके एक तंबू में सोता था और लंगर में खाना खाता था। अब यह सब बंद हो जाएगा और मैं फिर से फुटपाथ पर आ जाऊंगा।"
कुंडली में केएफसी टॉवर के पास स्थित झुग्गियों में रहने वाले आठ वर्षीय मौसम ने कहा कि वह पिछले एक साल से लंगर में अच्छा खाना खा रहा था। उसने कहा, "मेरे पिता एक कारखाने में काम करते हैं लेकिन चूंकि परिवार बड़ा है, इसलिए हमें अक्सर एक समय का भोजन छोड़ना पड़ता है। लेकिन पिछले एक साल से, हम लंगर में बहुत सारा खाना खाते थे। हम घर के लिए भी पैक करवाकर ले जाते थे। यह सब अब बंद हो जाएगा।
11 वर्षीय तरुण ने कहा कि मेरा स्कूल राजमार्ग के दूसरी ओर स्थित है। जब से किसान यहाँ आए थे, मुझे यातायात नहीं होने के कारण सड़क पार करने में कोई समस्या नहीं होती थी। मैं यहां खाना खाता था और फिर स्कूल चला जाता था। यह मेरे लिए दुख की बात है कि किसान वापस जा रहे हैं।" तरुण के पिता एक शोरूम में काम करते हैं।
सामान बीनने जुटे लोग : किसानों के घर लौटने के बाद सिंघू बॉर्डर पर कबाड़ी बांस के खंभे, तिरपाल, प्लास्टिक और लकड़ियां इकट्ठा करने में व्यस्त दिखे। सोनीपत के कुंडली में सिंघू बॉर्डर पर हरियाणा की तरफ करीब पांच किलोमीटर लंबी सड़क किसानों का धरना स्थल थी जिन्होंने वहां अस्थाई ढांचे खड़े कर रखे थे। इनमें प्रसाधन कक्ष और रसोई घर सहित आवास सुविधा भी थी।
सुबह से ही झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग और कबाड़ी बांस के खंभे, तिरपाल, लकड़ियां, प्लास्टिक और लोहे की छड़े चुनने में लगे रहे और वे उन्हें वापस अपने घर ले गए। उनमें से कुछ को पंजाब लौट रहे प्रदर्शनकारियों ने कंबल, ऊनी कपड़े, पैसे एवं रोजाना उपयोग के अन्य सामान भी दिए।
मूल रूप से असम के रहने वाला जावेद अपनी पत्नी और बच्चों के साथ प्लास्टिक शीट इकट्ठा करता हुआ दिखा। जावेद ने कहा, मैं इन्हें बेच दूंगा। हमें यहां लंगर में भोजन मिलता था लेकिन अब यह खत्म हो गया है। पास में ही बच्चों का समूह बांस के खंभे, प्लास्टिक के टुकड़े और अन्य सामान इकट्ठा करने में व्यस्त था। 14 वर्षीय शमी ने कहा कि सरदार जी से मुझे एक कंबल मिला। कुंडली में कई कारखाने हैं, बड़े गोदाम और वर्कशॉप हैं जहां बिहार, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों के हजारों प्रवासी मजदूर काम करते हैं। (भाषा/वार्ता)