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कृषि कानूनों को निरस्त करने के खिलाफ थी सुप्रीम कोर्ट की समिति, सरकार को कमेटी ने दिया था यह सुझाव...

हमें फॉलो करें कृषि कानूनों को निरस्त करने के खिलाफ थी सुप्रीम कोर्ट की समिति, सरकार को कमेटी ने दिया था यह सुझाव...
, मंगलवार, 22 मार्च 2022 (00:14 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति 3 कृषि कानूनों को पूरी तरह निरस्त नहीं करने के पक्ष में थी। समिति ने इसके बजाय निर्धारित मूल्य पर फसलों की खरीद का अधिकार राज्यों को देने और आवश्यक वस्तु कानून को खत्म करने का सुझाव दिया था। समिति के 3 सदस्यों में से एक ने सोमवार को रिपोर्ट जारी करते हुए यह बात कही।

पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने कहा कि उन्होंने तीन मौकों पर समिति की रिपोर्ट जारी करने के लिए उच्चतम न्यायालय को पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने के कारण वह इसे खुद जारी कर रहे हैं। घनवट ने कहा कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन कानूनों को निरस्त करना या लंबे समय तक निलंबन उन खामोश बहुमत के खिलाफ अनुचित होगा जो कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं।

समिति ने कानूनों के क्रियान्वयन और रूपरेखा में कुछ लचीलापन लाने का समर्थन किया। हितधारकों के साथ समिति की द्विपक्षीय बातचीत से जाहिर हुआ कि केवल 13.3 प्रतिशत हितधारक तीन कानूनों के पक्ष में नहीं थे। घनवट ने कहा, 3.3 करोड़ से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 85.7 प्रतिशत किसान संगठनों ने कानूनों का समर्थन किया।
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समिति के दो अन्य सदस्य अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी तथा कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी मौजूद नहीं थे।समिति ने तीन कृषि कानूनों पर 19 मार्च 2021 को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं, जिसमें अन्य बातों के अलावा किसानों को सरकारी मंडियों के बाहर निजी कंपनियों को कृषि उपज बेचने की अनुमति देने की बात कही गई।

उत्तर प्रदेश और पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले पिछले साल नवंबर में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया था। घनवट ने कहा कि समिति ने राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को कानूनी रूप देने की स्वतंत्रता समेत कानूनों में कई बदलावों का भी सुझाव दिया था।

समिति ने यह भी सुझाव दिया था कि ‘ओपन एंडेड’ खरीद नीति को बंद कर दिया जाना चाहिए और एक मॉडल अनुबंध समझौता तैयार किया जाना चाहिए। स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवट ने कहा कि तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया गया है। इसलिए अब इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। घनवट के अनुसार, रिपोर्ट से भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।

ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्राप्त जवाब से जाहिर हुआ कि लगभग दो-तिहाई उत्तरदाता कानूनों के पक्ष में थे। ई-मेल के माध्यम से प्राप्त जवाब से यह भी पता चला कि अधिकतर लोग कानूनों का समर्थन करते हैं। घनवट ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले आंदोलन करने वाले 40 संगठनों ने बार-बार अनुरोध करने के बावजूद अपनी राय प्रस्तुत नहीं की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के सुधारों के लाभों के बारे में विरोध करने वाले किसानों को नहीं समझा सकी।

निरस्त किए गए तीन कृषि कानून- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) कानून थे। तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करना दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 किसान संगठनों की प्रमुख मांगों में से एक था।

विरोध प्रदर्शन नवंबर 2020 के अंत में शुरू हुआ और संसद द्वारा तीन कानूनों को निरस्त करने के बाद समाप्त हुआ। कानून जून 2020 में एक अध्यादेश के जरिए लागू हुए थे और बाद में, उन्हें सितंबर 2020 में संसद द्वारा मंजूरी दे दी गई थी। आखिरकार, नवंबर 2021 में कानूनों को निरस्त कर दिया गया। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने जनवरी 2021 में कानूनों के अमल पर रोक लगा दी थी और साथ ही समिति के गठन का आदेश दिया था।

एमएसपी प्रणाली को कानूनी रूप देने की किसान संगठनों की मांग पर समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मांग ठोस तर्क पर आधारित नहीं थी और इसे लागू करना संभव नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया, उत्पादित किसी भी उत्पाद को व्यावहारिक मूल्य पर व्यापार करने की आवश्यकता होती है।

विशेष रूप से फसल के समय कीमतों में किसी भी तरह की अनुचित गिरावट से किसानों को बचाने के लिए एमएसपी एक सांकेतिक न्यूनतम मूल्य है। सरकार के पास उन सभी 23 वस्तुओं को खरीदने के लिए खजाना नहीं है जो वर्तमान में एमएसपी के दायरे में हैं।

रिपोर्ट में कहा गया कि जैसा कि हरित क्रांति के समय अनाज के लिए एमएसपी और खरीद समर्थन नीति बनाई गई, इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि गेहूं और चावल का भारी अतिरिक्त भंडार तैयार हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया, गेहूं और चावल के लिए खरीद पर सीमा होनी चाहिए, जो जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की जरूरतों के अनुरूप हो। ‘ओपन एंडेड’ खरीद नीति को बंद करने की आवश्यकता है क्योंकि यह कुछ निश्चित रूप से कृषि उत्पादन की संरचना को बदल रही है।

समिति ने कम से कम दस साल आगे कैसे बढ़ना है, इस पर कुछ विकल्प दिए। रिपोर्ट में कहा गया, समिति ने जिन विकल्पों पर विचार-विमर्श किया, उनमें से एक यह है कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में गेहूं और चावल की खरीद, भंडारण और पीडीएस पर उत्पादन, खरीद और गरीबी को उचित महत्व देने वाले उद्देश्य के आधार पर वर्तमान खर्च आवंटित किया जाए।

रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यों को अपने-अपने क्षेत्र में किसानों का सहयोग करने और गरीब उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिए अपने स्वयं के दृष्टिकोण विकसित करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। घनवट ने कहा कि वह जल्द ही कृषि नीति पर एक चर्चा पत्र लेकर आएंगे और कृषि सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर में दिल्ली में एक लाख से अधिक किसानों की एक रैली भी आयोजित करेंगे।(भाषा)

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