नई दिल्ली। देश में पर्यावरण से जुड़ी शीर्ष न्यायिक संस्था राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इस वर्ष कोरोनावायरस संकट के बावजूद वायु एवं जल प्रदूषण से जुड़े कई मुद्दों से संबंधित विवादों का निपटारा किया और इसके लिए डिजिटल कार्यपद्धति की मदद ली।
महज कुछ न्यायिक और विशेषज्ञ सदस्यों के साथ एनजीटी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी संबंधी कई संवेदनशील मसलों का निपटारा करते हुए 2020 में भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराया।
कोरोना संकट के कारण देश में लॉकडाउन लगाए जाने से पहले 15 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों ने 122 शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन, मल-जलशोधन, वायु गुणवत्ता प्रबंधन और नदियों में प्रदूषण और रेत खनन के नियमन को लेकर 'चैम्बर बैठकों' में हिस्सा लिया।
अधिकरण ने इस साल तटीय क्षेत्रों से जुड़े प्रदूषण, जलाशयों के पुनरुद्धार, मल-जलशोधन, औद्योगिक अपशिष्ट, ध्वनि प्रदूषण, राजमार्गों के ईद-गिर्द पर्यावरण के संरक्षण, रेस्तरां एवं होटलों की ओर से पर्यावरण संबंधी नियमों की अनुपालना समेत कई जटिल मामलों का निपटारा कर दिया।
इसके अलावा एनजीटी ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और सुबर्नसिरी जलविद्युत परियोजना, मुंबई ट्रांस कॉरिडोर, अलंग पोत भंजन गतिविधि तथा कई अन्य अहम परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की।
इस साल एनजीटी ने अपनी स्थापना के 10 साल पूरे किए। नवंबर महीने तक इसके पास कुल 5,073 मामले आए जिनमें से इसने 2,372 का निस्तारण किया तथा 2,701 मामलों को विचार के लिए छोड़ दिया। इसके साथ ही 943 मामले नई दिल्ली में इसकी मुख्य पीठ के समक्ष लंबित हैं और इन पर कोई फैसला नहीं हुआ है।
देश में जब लॉकडाउन लगा तो एनजीटी के प्रमुख न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में अधिकरण ने लोक स्वास्थ्य और साफ-सफाई से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर धीमी प्रगति और प्रशासन एवं सरकारी एजेंसियों के लचर रवैए पर नाखुशी जाहिर की। इस साल एनजीटी ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और वायु गुणवत्ता की खराब श्रेणी में आने वाले दूसरे शहरों में पटाखों के जलाने पर प्रतिबंध लगाने जैसा अप्रत्याशित रुख दिखाया।
धूल के वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारक होने का उल्लेख करते हुए अधिकरण ने एनसीआर और कुछ अन्य शहरों में सभी नगर निगमों को निर्देश दिए कि वे सड़कों की सफाई से पहले पानी का छिड़काव सुनिश्चित करें। अधिकरण ने खतरनाक पदार्थों से जुड़े कार्यों में होने वाली दुर्घटनाओं के पीड़ितों की मदद के लिए 'पर्यावरण राहत कोष' से संबंधित 800 करोड़ रुपए का उपयोग नहीं होने पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को आड़े हाथों लिया तथा यह आदेश दिया कि जिला अधिकारियों के माध्यम से यह मुआवजा तत्काल मुहैया कराया जाए।
एनजीटी ने इस बात भी संज्ञान लिया कि देश में कोविड-19 से संबंधित जैव-चिकित्सकीय अपशिष्ट हर दिन करीब 101 टन होता है। अधिकरण ने कहा कि इन अपशिष्टों को आम लोगों से पूरी तरह दूर करना जरूरी है ताकि आगे संक्रमण नहीं फैले। अधिकरण ने इस साल यह भी कहा कि उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे कई राज्यों की नदियों में पर्यावरण संरक्षण की चिंता किए बिना निर्बाध रूप से रेत का खनन किया जा रहा है। एनजीटी ने आदेश दिया कि इस तरह की परियोजनाओं को खनन योजना के मुताबिक अंजाम दिया जाए। (भाषा)