भगवान गणेशजी के संबंध में कई तरह की पौराणिक कथाएं मिलती हैं। जिस तरह शिव और विष्णु के अवतार हुए हैं उसी तरह गणेशजी के भी कई अवतार हुए हैं सभी की कथाओं को एक ही गणेशजी से जोड़कर देखने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। आओ जानते हैं कि किस युग में गणेशजी ने कौनसा अवतार लिया था।
गणेशजी के 12 प्रमुख नाम हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। उनके प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है।
1. सतयुग : गणेशजी सतयुग में सिंह पर सवार होकर प्रकट हुए थे। कहते हैं कि भगवान श्री गणपति ने कृतयुग अर्थात सतयुग में कश्यप व अदिति के यहां श्रीअवतार महोत्कट विनायक नाम से जन्म लिया। इस अवतार में गणपति ने देवतान्तक व नरान्तक नामक राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना की व अपने अवतार की समाप्ति की। इस युग में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेजस्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं।
2. त्रेता युग : गणेशजी त्रेता युग में मयूर पर सवार होकर प्रकट हुए थे। त्रेता युग में गणपति ने उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जन्म लिया और उन्हें गुणेश नाम दिया गया। त्रेता युग में उनका वाहन मयूर है, वर्णन श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हैं और छ: भुजाओं वाले हैं। इस अवतार में गणपति ने सिंधु नामक दैत्य का विनाश किया व ब्रह्मदेव की कन्याएं, सिद्धि व रिद्धि से विवाह किया।
3. द्वापर युग : द्वापर युग में गणेशजी मूषक पर सवर होकर प्रकट हुए थे। द्वापर युग में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहन वाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं। द्वापर युग में गणपति ने पुन: पार्वती के गर्भ से जन्म लिया व गणेश कहलाए। परंतु गणेश के जन्म के बाद किसी कारणवश पार्वती ने उन्हें जंगल में छोड़ दिया, जहां पर पराशर मुनि ने उनका पालन-पोषण किया।
इस अवतार में गणेश ने सिंदुरासुर का वध कर उसके द्वारा कैद किए अनेक राजाओं व वीरों को मुक्त कराया था। इसी अवतार में गणेश ने वरेण्य नामक अपने भक्त को गणेश गीता के रूप में शाश्वत तत्व ज्ञान का उपदेश दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि वे महिष्मति वरेण्य वरेण्य के पुत्र थे। कुरुप होने के कारण उन्हें जंगल में छोड़ दिया गया था।
यह भी कहा जाता है कि कहते हैं कि द्वापर युग में वे ऋषि पराशर के यहां गजमुख नाम से जन्मे थे। गजमुख नाम के राक्षस को मारने के कारण उनना ये नाम रखा गया जान पड़ता है। उनका वाहन मूषक था, जो कि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था। इस गंधर्व ने सौभरि ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी जिसके चलते इसको मूषक योनि में रहने का श्राप मिला था। इस मूषक का नाम डिंक है।
प्रथम लेखक : गणेशजी को पौराणिक पत्रकार या लेखक भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही 'महाभारत' का लेखन किया था। इस ग्रंथ के रचयिता तो वेदव्यास थे, परंतु इसे लिखने का दायित्व गणेशजी को दिया गया। इसे लिखने के लिए गणेशजी ने शर्त रखी कि उनकी लेखनी बीच में न रुके। इसके लिए वेदव्यास ने उनसे कहा कि वे हर श्लोक को समझने के बाद ही लिखें। श्लोक का अर्थ समझने में गणेशजी को थोड़ा समय लगता था और उसी दौरान वेदव्यासजी अपने कुछ जरूरी कार्य पूर्ण कर लेते थे।
4. कलयुग में : कहते हैं कि गणेशजी कलिकाल में घोड़े पर सवार होकर आएंगे। कहते हैं कि श्रीगणेशजी कलियुग के अंत में अवतार लेंगे। इस युग में उनका नाम धूम्रवर्ण या शूर्पकर्ण होगा। वे देवदत्त नाम के नीले रंग के घोड़े पर चारभुजा से युक्त होकर सवार होंगे और उनके हाथ में खड्ग होगा। वे अपनी सेना के द्वारा पापियों का नाश करेंगे और सतयुग का सूत्रपात करेंगे। इस दौरान वे कल्कि अवतार का साथ देंगे।