श्री गणेश जी विघ्नों को हरने वाले देवता हैं व सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण करते हैं। शास्त्रों में लिखा है- 'कलौ चण्डी विनायको' यानी कलियुग में चण्डी और गणेश जी के अलावा शीघ्र प्रसन्न होने वाले दूसरे देवता नहीं हैं।
गणेश प्रतिमा धातु की हो या शुद्ध मिट्टी की। अलग-अलग काष्ठ की प्रतिमा भी बनती है, जो तंत्र से संबंधित है। उनकी पूजा ही फलदायी होती है। प्रतिमा पर यदि रंग हो तो वे भी प्राकृतिक होना चाहिए, न कि रासायनिक।
सुबह जल्दी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर चावल की ढेरी पर उपलब्ध गणेश जी को विराजमान करें। पास ही तांबे का कलश कुछ जल डालकर रखें तथा गणेशजी के दाहिनी ओर गोघृत का दीपक जला दें व धूप इत्यादि से सुवासित करें।
ध्यान करें- आवाहन, आसन, पाद-प्रक्षालन, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंचामृत स्नान, शुद्धोदक जल स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र, यज्ञोपवीत, सिन्दूर, चंदन, इत्र, कुंकु, हरिद्रा, अभ्रक-अबीर, गुलाल इत्यादि। धूप, दीप, नेवैद्य, ताम्बूल दक्षिणा, आरती, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा इत्यादि समर्पित कर जप करें।
दिव्य मंत्र-
1. 'ॐ गं गणपतये नम:।'
2. 'ॐ वक्रतुण्डाय हुं।'
3. 'ॐ मेघोत्काय स्वाहा।'
4. 'ॐ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा।'
5. 'ॐ ह्रीं विरि विरिगणपति वर वरद सर्व लोकं में वशमानय स्वाहा।'
6. 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।'
7. 'ॐ नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा।'
8. 'ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा'।
इनमें से किसी एक को चुनकर यथाशक्ति जप करें। संकल्प लेना न भूलें। हवन कर कर लें तो अधिक लाभ होगा। नित्य 1 माला करें। इति:।