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Ganga dussehra 2025: गंगा दशहरा पर जानिए गंगा नदी के 10 रोचक तथ्‍य

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WD Feature Desk

, बुधवार, 4 जून 2025 (15:00 IST)
ganga dussehra 2025: ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। गंगा को भारत का हृदय माना जाता है। इसके एक और सिन्धु और सरस्वती बहती है तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र। गंगा को स्वर्ग की नदी माना जाता है। हालांकि हम वैज्ञानिक या ऐतिहासिक रूप से सोचे तो दुनिया की सभी नदियों के जल से इस नदी का जल एकदम भिन्न है जो कभी सड़ता नहीं है। इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। हालांकि इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि यह नदी कब से धरती पर बह रही है। जानिए इसके बारे में 10 रोचक तथ्य।ALSO READ: गंगा दशहरा पर्व का क्या है महत्व?
 
1. गौमुख से निकली गंगा: नए शोधानुसार वस्तुत: गंगा का उद्गम गंगोत्री से 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गौमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है।
 
2. गंगोत्री मुख्‍य पड़ाव: गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया।
 
3. गंगा की मुख्य 12 धाराएं: हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में विभक्त होती है इसमें मंदाकिनी, भागीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमाऊं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहां गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
 
4. हरिद्वार को कहते हैं गंगा द्वार: हिमाचल के हिमालय से निकलकर यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है- मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। हरिद्वार को गंगा द्वार भी कहते हैं क्योंकि यहीं से गंगा पहाड़ों से उतरकर मैदानी इलाके में आगे बढ़ती है।ALSO READ: गंगा दशहरा: माता गंगा के जन्म की 3 रोचक कहानी
 
5. गंगा का सागर से संगम: फिर यह नदी उत्तराखंड के बाद मध्यदेश से होती हुई यह नदी बिहार में पहुंचती है और फिर पश्चिम बंगाल के हुगली पहुंचती है। यहां से बांग्लादेश में घुसकर यह ब्रह्मपुत्र नदी से मिलकर आगे बड़ी है तब इसे पद्मा नाम से जाना जाता है। आगे यह गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। इस स्थान को गंगा सागर कहते हैं। कहते भी हैं कि सारे तीरर्थ बार बार गंगा सागर एक बार।
 
6. गंगा का अन्य नदियों से संगम: इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं- सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना। गंगा देवप्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश से प्रयागराज पहुंचकर यह यमुना से मिलती है।
 
7. गंगा के तट के तीर्थ: गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ है। गंगा देवप्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश, प्रयागराज, काशी, भागलपुर, गिरिया से होते हुए गंगासागर तक अनेकों तीर्थ है। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का संगम होता है।
 
8. गंगा के जंगल: ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि 16वीं तथा 17वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। इन वनों में जंगली हाथी, भैंस, गेंडा, शेर, बाघ तथा गवल का शिकार होता था। यहां लाखों तरह के पशु और पक्षी विचरण करते थे। परंतु आधुनिकरण और शहरीकरण के चलते यह सबकुछ नष्ट हो गया।
 
9. गंगा जल के जंतु: इसमें मछलियों की 140 प्रजातियां, 35 सरीसृप तथा इसके तट पर 42 स्तनधारी प्रजातियां पाई जाती हैं। गंगा के पर्वतीय किनारों पर लंगूर, लाल बंदर, भूरे भालू, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, भौंकने वाले हिरण, सांभर, कस्तूरी मृग, सेरो, बरड़ मृग, साही, तहर आदि काफी संख्या में मिलते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियां तथा कीट भी यहां पाए जाते हैं।
 
10. गंगा का जल: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी में ही समुद्र मंथन से निकला अमृत कुंभ का अमृत दो जगह गिरा था। पहला प्रयाग और दूसरा हरिद्वार।
 

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