3 दिसंबर 1984 की रात मौत हजारों लोगों को अपने आगोश में ले लिया था। भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस रिसाव से समूचे शहर में मौत का तांडव मच गया था। आज शायद तीसरी पीढ़ी जन्म लेने लगी है लेकिन उस घटना की चपेट में आए लोग आज भी दर्द झेल रहे हैं, आज भी अपंगता का दुख उन्हें पीड़ा दे रहा है। 3 दिसंबर वो तारीख शायद उसी दिन हमेशा के लिए मिट गई होती ताकि हर साल आकर घावों को फिर से जिंदा नहीं कर पाती। और शायद यह घाव जल्दी भर जाता है। लेकिन हर साल 3 दिसंबर आती है एक नई उम्मीद की आस होती है कि अब न्याय मिलेगा। पर वहीं दिल में दर्द, आस में जोड़े हुए हाथ, अपनों को खोने का गम कोई नहीं भर सकता है।
- 3 दिसंबर को हएु हादसे में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 5 लाख 58 हजार 125 लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और दूसरी जहरीली रसायन की चपेट में आ गए। जिससे कुछ ही दिनों में 25 हजार लोगों की जान चली गई।
- संभावना ट्रस्ट क्लीनिक की एक स्टडी में सामने आया था कि जन्म के बाद से ही करीब 2500 से ज्यादा बच्चे विकृति का शिकार हो गए। तो करीब 1700 से अधिक बच्चे जन्म से ही विकृति पैदा हुए।
-हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड के प्रमुख अधिकारी वॉरेन एंडरसन रातो-रात भारत छोड़कर अमेरिका फरार हो गए। इसके बाद से कभी भी भारत नहीं लौटें।
- 7 जून 2010 को स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को सिर्फ दो-दो साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि कुछ दिन बाद ही सभी आरोपी जमानत पर रिहा हो गए। इस त्रासदी का मुख्य आरोपी इस दुनिया में नहीं है। यूनियन कार्बाइड लिमिटेड के तत्कालीन मुखिया और इस त्रासदी के मुख्य आरोप एंडरसन की 29 सितंबर 2014 को मौत हो गई।