23 May Black Day Of Tibet : चीन अपनी साम्राज्यवादी नीति के कारण जाना जाता है। दूसरे की जमीन हड़पकर अपने क्षेत्र के विस्तार करने के कारण चीन के भारत, रूस, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, मंगोलिया, हांगकांग आदि देशों से विवाद चलता रहता आ रहा है। चीन साम, दाम, दण्ड, भेद का प्रयोग करके अपनी गन्दी नीयत से दूसरे देशों पर अपना प्रभाव दिखाता है, उन्हें हड़पता है और पूरे विश्व पर अपना अधिपत्य जमाने की इच्छा रखता है। ऐसा ही तिब्बत के साथ भी हुआ।
23 मई 1951 को तिब्बत और चीन में लगभग 8 महीने से चल रहे शीत युद्ध का अंत हो गया था। इस दिन चीन ने तिब्बत का राज्यहरण कर लिया था। तिब्बत की सरकार ने चीन की पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के दबाव में 17 पॉइंट के एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। इससे पूरे तिब्बत पर चीन का अधिकार हो गया। इसके लिए चीन ने सैन्य बल का भी प्रयोग हुआ। इसमें 1950 में चमदो स्थान पर हुई सैन्य झड़प मुख्य थी। इसे चीन की सरकार द्वारा 'शांतिपूर्वक तिब्बत की मुक्ति' कहा गया जबकि तिब्बत के प्रशासन द्वारा 'तिब्बत पर चीन का आक्रमण' माना गया।
स्थानीय तिब्बतियों ने चीन के इस कुकृत्य का विरोध भी किया। अपनी स्वतंत्रता और संस्कृति के लिए वह चीनी सेना से भी लड़े। पर चीन ने उन्हें कुचल कर रख दिया जैसे कि वह शिनजियांग प्रान्त में कर रहा है और जैसे कि उसने 1989 में टियाननमेन चौक पर छात्र आंदोलन को कुचला था। इस चीन अधिकृत तिब्बत में जो भी तिब्बत की आजादी के लिए आवाज उठाता था, गायब कर दिया जाता था। इसी कारण दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी थी।
चीन हमेशा से इस बात को नकारता रहा है कि उसने तिब्बत पर अवैध कब्जा किया। उसका मानना है कि तिब्बत चीन का ही हिस्सा था। ऐसा ही वह भारत के हिस्से अक्साई चीन के लिए भी कहता है।
आज भी भारत में तिब्बत की आजादी को लेकर आवाजें उठ रही है। भारत सरकार द्वारा भी तिब्बत से अच्छे रिश्ते रखने की अभिलाषा से ITBP ( INDIA TIBET BORDER POLICE ) का गठन किया गया था।