इस दुनिया में मानव ही मानव को बचा सकता है। मानवता एक ऐसा शब्द जिसकों शब्दों में परिभाषित करना बहुत न्यायिक नहीं होगा। यह व्यापक शब्द है। इसकी परिभाषा बहुत बड़ी है। जिसने मानवता को समझा होगा उनके लिए किंतु - परंतु कुछ नहीं होगा। मानवता का सबसे बड़ा उदाहरण आज सभी के सामने हैं। जी हां, कोविड-19 के दौरान उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना कई लोगों का जीवन बचाया है। यह ऐसा वक्त आया है जब पूरी दुनिया एक साथ खड़ी है। समूची दुनिया एक-दूसरे देश की मदद कर रही है।
कोरोना काल में फ्रंटलाइन वर्कर्स द्वारा जिस तरह से अपनी जान जोखिम में डालकर जान बचाई जा रही यही असली मानवता है। न जाने कितने डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी और मीडियाकर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अलविदा कह गए..... लेकिन किसी की जान ना जाए इसलिए तुरंत ही दूसरा सहकर्मी आकर जिम्मेदारी को संभाल लेता है.... एक-दूसरे की सहायता का यह सिलसिला यू ही चलता रहे.....। क्योंकि कोविड की जंग छोड़कर अलविदा कहने वाले सहकर्मी ने एक बार फिर से इंसानियत से परिचय कराया है। वरना कई बार लोग दूसरों की मदद दूर अपनों की मदद करने में हिचकिचाते हैं। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि, '
इस अनजान दुश्मन से युद्ध का शंखनाद बजते ही
देश के रक्षकों ने बड़े साहस के साथ मोर्चा संभाला....
कब हुई विश्व मानवता दिवस को मनाने की शुरूआत -
विश्व मानवता दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों के मन में मानवता की भावना को जाग्रत करना है। हालांकि 19 अगस्त 2003 में बगदाद में संयुक्त राष्ट्र के हेडक्वार्टर पर आतंकवादी हमले में करीब 22 लोग मारे गए थे। इनमें एक समाज सेवक सरगिओ विएरा डी मेलो भी शामिल थे। असमय मौत के गाल के समाएं सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
19 अगस्त 2008 को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व मानवता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। इसके बाद से ही हर साल 19 अगस्त को विश्व मानवता दिवस मनाया जाता है। गौरतलब है कि भारत में मानवता के ऐसे कई प्रतिबिंब है जो आज भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन आज भी गर्व के साथ याद किए जाते हैं। प्रमुख रूप से मदर टेरेसा और महात्मा गांधी हैं।
दुनिया में आज भी कई ऐसे क्षेत्र है जहां असहाय लोगों को मदद की आस है। एशिया और अफ्रीका के कई क्षेत्रों में लाखों लोग भुखमरी के शिकार होते हैं। हालात इतने बदतर की कई बार संयुक्त राष्ट्र भी मदद करने में असहाय महसूस करता है। कुछ लोगों को सहारा मिल रहा है तो कुछ लोग भगवान भरोसे अपनी जिंदगी काट रहे हैं। आज देश के कई हिस्सों में मानव समाज की जरूरत है। कई बार अनिश्चितकाल में प्राकृतिक आपदाओं आ जाती है। ऐसे में बस मदद के लिए आंखें मानव समाज को ढूंढती है। मानव चाहे तो एक-दूसरे की मदद कर गरीबी को भी खत्म कर सकता है। लेकिन बस जरूरत है तो कदम बढ़ाने की...।