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खतरे की घंटी बज गई...

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विभूति शर्मा

उत्तरप्रदेश निकाय चुनाव परिणामों ने राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है, खासतौर से ऐसे समय में जबकि कांग्रेस राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की तैयारी कर रही है और राहुल गांधी स्वयं पार्टी को गुजरात चुनाव जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
 
 
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग सिर पर है और उप्र निकाय चुनाव परिणाम राज्य विधानसभा चुनाव परिणामों की तरह ही भाजपा के पक्ष में गए हैं। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है। राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में भी कांग्रेस न तो कोई नगरपालिका जीत सकी और न ही नगर पंचायत। इन परिणामों से साफ संकेत निकाला जा सकता है कि गुजरात और हिमाचल की डगर कांग्रेस के लिए कांटों से भरी है।
 
 
गुजरात चुनाव को इस बार कांग्रेस पार्टी आरपार की लड़ाई मानकर चल रही है। कुछ लोग इसे कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी मान रहे हैं। वजह यह है कि भाजपा ने देश में अभी तक सारे चुनाव गुजरात को मॉडल घोषित करते हुए लड़े और जीते हैं। कांग्रेस इस मॉडल को गुजरात में ही फेल साबित करना चाहती है ताकि भविष्य में होने वाले अन्य राज्यों और 2019 के आम चुनावों में मोदी मॉडल को शिकस्त दे सके। इसी अभियान में जुटे राहुल गांधी गुजरात के विकास को झुठलाते हुए धर्म की राजनीति के कीचड़ में घुस गए और एक बार फिर अपनी भद्द पिटा बैठे।
 
 
दरअसल, कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ऊहापोह की इस स्थिति से ही नहीं उबर पा रहा है कि वह नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और संघ के किस कार्ड का कैसे जवाब दें। राहुल गांधी के रणनीतिकार और भाषण लेखक भी विकास के मुद्दों से भटककर जातियों या धर्म के मुद्दों में घुस जाते हैं, जहां प्राय: वे पटखनी खा जाते हैं। राहुल कभी हार्दिक पटेल से मिलकर पाटीदार आरक्षण का वादा करने की कोशिश करते हैं तो कभी मंदिरों में जाकर हिन्दुओं को लुभाते नजर आ रहे हैं। उनके पैरोकार गांधी परिवार के जनेऊ वाले फोटो दिखाकर मजाक बन जाते हैं।
 
 
जहां तक जमीनी हक़ीक़त का सवाल है, तो पिछले दिनों विभिन्न न्यूज़ चैनलों द्वारा कराए गए सर्वे ने बताया था कि गुजरात और हिमाचल दोनों राज्यों में भाजपा जीतने वाली है। इसकी वजह यही मानी जा सकती है कि पूरे देश की तरह गुजरात में भी कांग्रेस के पास सर्वमान्य लीडरशिप नजर नहीं आती।
 
22 सालों से शासन कर रही भाजपा के वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को जहां आज भी गुजरात की 34 प्रतिशत जनता सर्वे में पहली पसंद बता रही है वहीं कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल को मात्र 19 प्रतिशत लोग ही मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं।
 
कुल मिलाकर स्थितियां गुजरात में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनने के संकेत दे रही हैं। साथ ही बोनस के तौर पर हिमाचल में भाजपा के लौटने के आसार नजर आ रहे हैं। भले ही सर्वे में मुख्यमंत्री की रेस में कांग्रेस के वीरभद्र आगे हैं, लेकिन भाजपा ने प्रेमकुमार धूमल के नेतृत्व में हिमाचल में सरकार बनाने के लिए कमर कस रखी है। सर्वे भी जीत भाजपा की ही बता रहे हैं।
 
9 और 14 दिसंबर को होने वाले चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया 17 नवंबर से शुरू हुई। वोटों की गिनती 18 दिसंबर को होगी।
 
पहली बार होगी वीवीपैट से वोटिंग : पहली बार ऐसा होगा कि गुजरात की सभी 182 सीटों के लिए वोटिंग में वीवीपैट (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) का भी इस्तेमाल किया जाएगा। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में ईवीएम में गड़बड़ियों के आरोप लगे थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी आगामी चुनावों में वीवीपैट का इस्तेमाल सुनिश्चित करने को कहा था। गुजरात विधानसभा में 182 सीटें हैं। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 23 जनवरी 2018 को खत्म हो रहा है। गुजरात को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। यहां पिछले 19 साल से बीजेपी सत्ता में है।
 
ये है गुजरात का जातीय समीकरण
पाटीदार 20%
मुस्लिम 9%
पाटीदार+मुस्लिम 29%
 
सवर्ण 20%
ओबीसी 30%
क्षत्रिय, हरिजन आदिवासी 21%
सवर्ण+ओबीसी+केएचए 71%
 
गुजरात विधानसभा का गणित : गुजरात में मौटे तौर पर 1995 से ही बीजेपी सत्ता में है।
 
विधानसभा की कुल सीटें- 182
बीजेपी- 116
कांग्रेस- 60
गुजरात परिवर्तन पार्टी- 2
एनसीपी- 2
जनता दल यूनाइटेड- 1
निर्दलीय- 1
 
हिमाचल के पिछले चुनाव नतीजे : हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। विधानसभा में कांग्रेस के 36 विधायक हैं, जबकि  26 विधायकों के साथ बीजेपी राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। अन्य के खाते में 6 सीटें हैं। सूबे की विधानसभा में कुल 68 सीटें हैं।
 
खास बात ये है कि हिमाचल में कांग्रेस की तरफ से वीरभद्रसिंह सीएम उम्मीदवार होंगे और राहुल ने बाकायदा इसका ऐलान कर रखा है जबकि बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया है।

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