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गुरु पूर्णिमा: प्राचीन भारत के 14 महान गुरु जिन्होंने दिया धर्म और देश को बहुत कुछ

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WD Feature Desk

, सोमवार, 7 जुलाई 2025 (15:39 IST)
भारत में गुरु के बगैर मोक्ष के मार्ग पर चलना मुश्किल माना गया है। प्राचीन काल से ही भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा रही है। प्रथम गुरु शिवजी को माना गया है जिनके सात शिष्य थे जो बाद में सप्त ऋषि कहलाए। इसी गुरु शिष्य परंपरा के लिए ही महान गुरु वेद व्यास के जन्मदिन पर गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन गुरु की पूजा होती है। आओ जानते हैं भारत के 10 महान गुरुओं के बारे में।
 
1. बृहस्पति: सभी देवताओं के गुरु का नाम बृहस्पति हैं। बृहस्पति से पूर्व अंगिरा ऋषि देवताओं के गुरु थे। हर देवता किसी न किसी का गुरु रहा है।
 
2. शुक्राचार्य: सभी असुरों के गुरु का नाम शुक्राचार्य हैं। शुक्राचार्य से पूर्व महर्षि भृगु असुरों के गुरु थे। कई महान असुर हुए हैं जो किसी न किसी के गुरु रहे हैं।
 
3. दत्तात्रेय: गुरुओं की परंपरा में सबसे बड़ा नाम है भगवान दत्तात्रेय। भगवान परशुराम के गुरु स्वयं भगवान शिव और भगवान दत्तात्रेय थे।
 
4. गुरु वशिष्ठ: भगवान राम के गुरु ऋषि वशिष्ठ, वाल्मीकि और विश्वामित्र थे। गुरु ऋषि वशिष्ठ की गणना सप्तर्षियों में की जाती है।
 
5. गुरु विश्वामित्र: महान तपस्वी ऋषि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की सिद्धि के बल पर अलग स्वर्ग की रचना कर दी थी। त्रिशुंकी की कथा इन्हीं से जुड़ी हुई है।
 
6. महर्षि वेद व्यास: भगवान श्रीकृष्‍ण के गुरु वैसे तो गर्ग मुनि थे लेकिन उन्होंने सांदीपनि ऋषि से शिक्षा दीक्षा ग्रहण की थी और वेद व्यास ऋषि उनके पथपदर्शक थे।
 
7. ऋषि अगस्त्य: गुरु वशिष्ठ के भाई और भगवान शिव के महान शिष्य ऋषि अगस्त्य ने ही दक्षिण भारत की संस्कृतिक और धर्म को स्थापित किया था। इसके लाखों शिष्य थे। महर्षि अगस्त्य की गणना सप्तर्षियों में की जाती है।
 
8. वाल्मीकि ऋषि: महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। इनके आश्रम में हजारों शिष्य वेदपाठ करते थे।
 
9. ऋषि याज्ञवल्क्य: यह ब्रह्मज्ञानी थे। याज्ञवल्क्यजी ने राजा जनक के प्रश्नों का भी समाधान किया था।
 
10. ऋषि भारद्वाज: चरक ऋषि ने भारद्वाज को 'अपरिमित' आयु वाला कहा है। अंगिरावंशी भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। विमानशास्त्र के रचयिता थे ऋषि भारद्वाज। वनवास के समय प्रभु श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था। उक्त प्रमाणों से भारद्वाज ऋषि को अपरिमित वाला कहा गया है।
 
11. महर्षि दुर्वासा: महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया के पुत्र दुर्वासा के 10 हजार शिष्य उनके साथ ही पथभ्रमण करते थे। दत्तात्रेय और चंद्रमा इनके भाई थे। ब्रह्मावादिनी नाम नामक इनकी एक बहन थी।

12. ऋषि कणाद: परमाणु, गुरुत्वाकर्षण और गति के सिद्धांत के जनक। इन्होंने सबसे पहले बताया कि अणु की शूक्ष्मतम ईकाई क्या है और किस तरह यह संपूर्ण जगत परमाणुओं की ही संवरचना है।
 
13. आचार्य चरक: आयुर्वेदाचार्य और त्वचा चिकित्सा के जनक। इन्होंने वनस्पति विज्ञान को जन्म दिया और देश दुनिया की लाखों जड़ी बूटियों के बारे में बताया। इन्हीं के कार्यों को बागभट्ट जी ने 8वीं सदी में आगे बढ़ाया था। यूनानी चिकित्सा भी आयुर्वेद से ही प्रेरित है।
 
14. महर्षि सुश्रुत: सर्जरी के आविष्कारक, प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए।

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