मूलत: 13 अखाड़ें हैं। हाल ही में किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया है। उक्त तेरह अखाड़ों के अंतर्गत कई उप-अखाड़े माने गए हैं। शैव पंथियों के 7, वैष्णव पंथियों के 3 और उदासिन पंथियों के 3 अखाड़े हैं। तेरह अखाड़ों में से जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है। इसके अलावा अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा आदि सभी शैव से संबंधित है। वैष्णवों में वैरागी, उदासीन, रामादंन और निर्मल आदि अखाड़ा है।
कालांतर में शंकराचार्य के आविर्भाव काल सन् 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए, जिनमें सात पंचायती अखाड़े आज भी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत समाज में कार्यरत हैं।
अखाड़ों की स्थापना के क्रम की बात करें तो सन् 660 में सर्वप्रथम आवाह्न अखाड़ा, सन् 760 में अटल अखाड़ा, सन् 862 में महानिर्वाणी अखाड़ा, सन् 969 में आनंद अखाड़ा, सन् 1017 में निरंजनी अखाड़ा और अंत में सन् 1259 में जूना अखाड़े की स्थापना का उल्लेख मिलता है। लेकिन, ये सारे उल्लेख उनके हैं जो शंकराचार्य के जन्म को 788 ईसवीं मानते हैं, परंतु असल में शंकराचार्य का जन्म 2055 वर्ष पूर्व हुआ था।
बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें।
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े :
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)।
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)।
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)।
वैष्णवी अखाड़ा:
वैष्णवी अखाड़े में महंत की पदवी पाने के लिए नवागत संन्यासी को वर्षों तक सेवा करनी पड़ती है। इस के बाद ही उसको महंत की पदवी हासिल होती है। वैष्णव अखाड़े की परंपरा के अनुसार जब भी नवागत व्यक्ति संन्यास ग्रहण करता है तो तीन साल की संतोषजनक सेवा 'टहल' करने के बाद उसे 'मुरेटिया' की पदवी प्राप्त होती है। इसके बाद तीन साल में वह संन्यासी 'टहलू' पद ग्रहण कर लेता है।
'टहलू' पद पर रहते हुए वह संत एवं महंतों की सेवा करता है। कई वर्ष के बाद आपसी सहमति से उसे 'नागा' पद मिलता है। एक नागा के ऊपर अखाड़े से संबंधित महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं। इन जिम्मेदारियों में खरा उतरने के बाद बाद उसे 'नागा अतीत' की पदवी से नवाजा जाता है। नागा अतीत के बाद 'पुजारी' का पद हासिल होता है। पुजारी पद मिलने के बाद किसी मंदिर, अखाड़ा, क्षेत्र या आश्रम का काम सौंपे जाने की स्थिति में आगे चलकर ये 'महंत' कहलाते हैं।
जिस तरह शैवपंथ के लिए शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ, गुरु गौरखनाथ हुए, उसी तरह वैष्णवपंथ के लिए रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, वल्लभाचार्य ने उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने वैष्णव संप्रदायों को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। शैव संन्यासियों की तरह वैष्णवों के भी संप्रदाय और अखाड़े हैं। उन संप्रदायों और अखाड़ों के अंतर्गत उप-संप्रदाय और अखाड़े भी अस्तित्व में है।
वैष्णवों में भी मूलत: बैरागी संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं :- श्री दिगम्बर आनी अखाड़ा, श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा और श्री निर्मोही आनी अखाड़ा।
1- श्री दिगम्बर आनी अखाड़ा- इसका मठ श्यामलालजी, खाकचौक मंदिर, पोस्ट- श्यामलालजी, जिला-सांभर कांथा, गुजरात में स्थित है। इसका दूसरा मठ दिगम्बर अखाड़ा तपोवन, नासिक, महाराष्ट्र में स्थित है। पहले के संत है- श्रीमहंत केशवदास और दूसरे के श्रीमहंत रामकिशोर दास।
2- श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा- इसका मठ अयोध्या हनुमान गढ़ी जिला- फैजाबाद में स्थित है और इसके संत हैं- श्रीमहंत धर्मदास। दूसरा मठ- श्रीलंबे हनुमान मंदिर, रेलवे लाइन के पीछे, सूरत, गुजरात में है और इसके संत हैं- श्रीमहंत जगन्नाथ दास।
3- श्री निर्मोही आनी अखाड़ा- इसका मठ धीर समीर मंदिर, बंशीवट, वृन्दावन, मथुरा में स्थित है और इसके संत हैं- श्रीमहंत मदन मोहन दास। दूसरा मठ- श्रीजगन्नाथ मंदिर, जमालपुर, अहमदाबाद, गुजरात में स्थित है और इसके संत हैं- श्रीमहंत राजेन्द्र दास।