हिमालय में कुछ ऐसी जगहें हैं जहां पर शून्य से 45 डीग्री से भी नीचे तापमान रहता है फिर भी वहां पर निर्वस्त्र रूप से रहकर साधुओं को तप करते देखे जाने की घटना से भारतीय सैकिक वाकिफ है। एक ओर जहां पर भारतीय सैनिक खून को जमा देवे और हाड़ कपा देने वाली ठंड में विशेष वस्त्र पहनकर देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं वहीं ये नागा साधु शिव के ध्यान में लीन रहते हैं। इन्हें निर्वस्त्र और भूखे पासे घूमते हुए देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। अब मन में सवाल उठता है कि यह कैसे संभव हो सकता है? तो जानिए इसका उत्तर।
1. हाड़ी विद्या : कंठ के कूप में संयम करने पर भूख और प्यास की निवृत्ति हो जाती है अर्थात भूख और प्यास नहीं लगती। इसे कुछ क्षेत्रों में हाड़ी विद्या भी कहते हैं। यह विद्या पौराणिक पुस्तकों में मिलती है। इस विद्या को प्राप्त करने पर व्यक्ति को भूख और प्यास की अनुभूति नहीं होती है और वह बिना खाए- पिए बहुत दिनों तक रह सकता है।
कंठ की कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता व अनाहार सिद्धि होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र, जिसके माध्यम से पेट में वायु और आहार आदि जाते हैं, को कंठकूप कहते हैं। कंठ के इस कूप और नाड़ी के कारण ही भूख और प्यास का अहसास होता है।
कैसे प्राप्त करें यह विद्या : इस कंठ के कूप में संयम प्राप्त करने के लिए शुरुआत में प्रतिदिन प्राणायाम और भौतिक उपवास का अभ्यास करना जरूरी है।
2. काड़ी विद्या : इस विद्या को प्राप्त करने पर कोई व्यक्ति ऋतुओं (बरसात, सर्दी, गर्मी आदि) के बदलाव से प्रभावित नहीं होता है। इस विद्या की प्राप्ति के बाद चाहे वह व्यक्ति बर्फीले पहाड़ों पर बैठ जाए, पर उसको ठंड नहीं लगेगी और यदि वह अग्नि में भी बैठ जाए तो उसे गर्माहट की अनुभूति नहीं होगी।
कैसे प्राप्त करें : हठयोग की क्रियाओं और प्राणायाम को साधने से यह विद्या सहज ही प्राप्त हो जाती है।