हरियाणा विधानसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे आए हैं, उसको देखकर लग रहा है कि इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराएगा। हरियाणा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में दुष्यंत चौटाला की पार्टी राज्य में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है। दुष्यंत 'किंगमेकर' या फिर 'किंग' की भूमिका में भी आ सकते हैं।
दुष्यंत कह भी चुके हैं कि सत्ता की चाबी उनके पास है। साथ ही अपने समर्थकों के माध्यम से दबी जुबान में उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा भी ठोक दिया है। हालांकि 10 सीटों के साथ उन्हें कौन मुख्यमंत्री बनाएगा, यह फिलहाल तो स्पष्ट नहीं है। लेकिन, माना जा रहा है कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस दुष्यंत पर दांव लगा सकती है।
चुनाव परिणामों के बाद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेन्दर सिंह हुड्डा कह चुके हैं कि जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) के लिए कांग्रेस के दरवाजे खुले हैं। साथ ही उन्होंने भाजपा विरोधी दलों को इस आधार पर एक साथ आने की अपील की है कि राज्य की जनता ने भाजपा के खिलाफ वोट किया है।
जानकारों की मानें तो कांग्रेस दुष्यंत चौटाला की मुख्यमंत्री बनने की शर्त को स्वीकार कर सकती है क्योंकि वह कभी नहीं चाहेगी कि सत्ता में भाजपा की वापसी हो। कांग्रेस ऐसा प्रयोग कर्नाटक में कर चुकी है। वहां कम सीटें होने के बावजूद जद एस के नेता एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उसने समर्थन दिया था। इसका एकमात्र उद्देश्य भाजपा को सत्ता से दूर रखना था।
हालांकि यह प्रयोग बहुत लंबा नहीं चला और कुछ समय बाद कुमारस्वामी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और भाजपा के येदियुरप्पा फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। इस बीच, दुष्यंत चौटाला ने यह भी कहा है कि वे अकेले कोई फैसला नहीं ले सकते। जाहिर है चौटाला अपने पत्ते अभी पूरी तरह से नहीं खोलना चाहते। परिणाम आने के बाद ही संभवत: वह तय करेंगे कि किधर जाना है।
एक गणित यह भी सामने आ रहा है एनडीए के सहयोगी दल अकाली दल के वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल दुष्यंत को भाजपा के पाले में ला सकते हैं क्योंकि बादल के संबंध न सिर्फ दुष्यंत के परदादा देवीलाल से अच्छे रहे हैं, बल्कि दादा ओमप्रकाश चौटाला से भी बहुत मधुर रहे हैं। यदि दुष्यंत मानते हैं तो भाजपा उन्हें डिप्टी सीएम का पद ऑफर कर सकती है। हालांकि यह तो वक्त ही बताएगा कि सत्ता के इस खेल में भाजपा बाजी मारती है या फिर कांग्रेस।