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चिंता करने का भी तय करें टाइम, एंजाइटी होगी मिनटों में दूर

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 20 जून 2025 (17:51 IST)
how to stop worrying: आज की तेज रफ्तार जिंदगी में चिंता और तनाव जैसे शब्द हर किसी की डिक्शनरी में शामिल हो चुके हैं। चाहे वो कॉलेज का स्टूडेंट हो, वर्किंग प्रोफेशनल हो, हाउसवाइफ हो या फिर कोई रिटायर्ड व्यक्ति, हर कोई किसी न किसी बात को लेकर चिंता में डूबा रहता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर हम अपनी चिंता को एक scheduled activity बना लें, यानी दिन में कोई तय समय निकालें केवल चिंता करने के लिए, तो क्या हमारी मानसिक स्थिति बेहतर हो सकती है? यह बात सुनने में थोड़ी अजीब ज़रूर लगती है, लेकिन रिसर्च और माइंडफुलनेस एक्सपर्ट्स के अनुसार, "चिंता का समय तय करना" एक scientifically proven technique है जिससे एंज़ायटी को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
 
चिंता से जुड़ी हमारी आम मानसिकता
हम में से ज्यादातर लोग दिनभर की गतिविधियों के बीच चिंता को यूं ही आने देते हैं। कभी ऑफ़िस की डेडलाइन को लेकर, कभी बच्चों की पढ़ाई को लेकर, कभी आर्थिक स्थिति तो कभी रिलेशनशिप को लेकर। इन सबके बीच हम यह नहीं समझ पाते कि यह निरंतर और अनियंत्रित चिंता हमें धीरे-धीरे मानसिक थकावट, डिप्रेशन और कई बार शारीरिक बीमारियों की तरफ धकेल देती है। बार-बार आने वाले नेगेटिव थॉट्स और "क्या होगा अगर..." जैसी सोच हमें चैन से जीने नहीं देती। यही वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य एक्सपर्ट्स अब इस नई तकनीक की तरफ ध्यान आकर्षित कर रहे हैं – "Scheduled Worry Time"।
 
क्या होता है 'Scheduled Worry Time'?
यह तकनीक कहती है कि दिन का एक छोटा सा हिस्सा जैसे 15 से 30 मिनट केवल चिंता करने के लिए अलग कर दीजिए। इस दौरान आप अपने मन में जो भी डर, चिंता, असमंजस या उलझन है, उन्हें खुलकर सोचिए, चाहें तो डायरी में लिखिए। लेकिन जब यह समय खत्म हो जाए, तो खुद से यह वादा कीजिए कि अब आप बाकी दिन उस चिंता पर ध्यान नहीं देंगे। यह तरीके से हम अपने दिमाग को "ट्रेन" करते हैं कि चिंता की भी एक सीमित जगह है, और यह 24x7 हमारे जीवन का हिस्सा नहीं बन सकती।
 
कैसे करें शुरुआत?
इस प्रैक्टिस को अपनाने के लिए आपको कुछ सिंपल स्टेप्स को फॉलो करना होगा:
  • चिंता का समय तय करें- हर दिन एक फिक्स समय चुनें, जैसे सुबह 9 बजे या शाम को 6 बजे, जब आप कुछ समय केवल अपनी चिंता को दें।
  • एकांत और शांत जगह चुनें- कोई ऐसी जगह जहां कोई डिस्टर्ब न करे, ताकि आप अपने विचारों से खुलकर जुड़ सकें।
  • लिखना शुरू करें- एक डायरी या नोटबुक में उन सभी चीज़ों को लिखें जो आपको बेचैन करती हैं।
  • समाप्ति के बाद करें पॉजिटिव एक्टिविटी- जब 'चिंता का समय' पूरा हो जाए, तो कोई रिलैक्सिंग काम करें जैसे म्यूजिक सुनना, टहलना या किसी से हँसी-मजाक की बात करना।
इसके फायदे क्या हैं?
जब आप चिंता को अपने जीवन में एक limited time window में बांध देते हैं, तो इससे न सिर्फ एंजाइटी घटती है, बल्कि आपके दिमाग को फोकस करने में मदद मिलती है। आप अपने काम पर बेहतर ध्यान दे पाते हैं, रिश्तों में तनाव कम होता है, और मानसिक स्पष्टता आती है। इस तकनीक से यह भी महसूस होता है कि अधिकांश चिंताएं अस्थायी होती हैं, और जब उन्हें सोचने के लिए समय तय किया जाता है, तो वो इतनी भयावह नहीं लगतीं।
 
आधुनिक जीवनशैली में क्यों है यह जरूरी?
आज का जमाना 'इंस्टेंट' का है, इंस्टेंट रिवॉर्ड, इंस्टेंट रिज़ल्ट और इंस्टेंट रिएक्शन। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य के लिए 'धीरे चलना' और 'ठहराव' पैदा करना बेहद जरूरी है। चिंता का समय तय करना इसी ठहराव की शुरुआत है। यह तरीका हमारे ब्रेन को यह संदेश देता है कि हम अपने विचारों और इमोशन्स पर कंट्रोल रखते हैं, न कि वो हम पर। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है, और जीवन को ज्यादा जागरूक होकर जीने की क्षमता विकसित होती है। 


अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। 

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