नहीं रहे महान अभिनेता दिलीप कुमार सूत्रों के मुताबिक अभिनेता दिलीप कुमार बाइलेटरल प्ल्यूरल इफ्यूजन नामक बीमारी से जूझ रहे थे। इस बीमारी में सांस लेने में काफी परेशानी होती है। आइए जानते हैं यह बीमारी क्या है, इसके लक्षण और समाधान -
क्या है बाइलेटरल प्ल्यूरल इफ्यूजन
प्ल्यूरल इफ्यूजन एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ों के बाहर अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ इकट्ठा हो जाता है। जिस वजह से कई रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। यह तरल पदार्थ इकट्ठा होने पर इसे निकालना होता है।
आपको बता दें कि प्लूरा एक पतली सी झिल्ली है। शरीर में छाती और फेफड़ों में अंदरूनी परत के बीच पतली सी झल्ली होती है। लेकिन जब समस्या होने लग जाती है तब खाली जगह में तरल पदार्थ बनने लग जाता है। साधारण इंसान में भी यह अंतर होता है लेकिन उस खाली जगह में केवल एक छोटा चम्मच जितना ही तरल पदार्थ होता है। जिससे सांस लेने में सहायता करता है।
कैसे होती है प्ल्यूरल इफ्यूजन बीमारी
पतली सी जगह में जब तरल पदार्थ जमने लगता है तो सांस लेने में परेशानी होती है
- छाती में दर्द
- सांस फूलना
- गहरी सांस लेने में दर्द होना
-खांसी होने पर दर्द होना
- दम घुटना
यदि आपको किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं है लेकिन लगातार छाती में दर्द होना, खांसी होना, दम घुटना, सांस लेने में परेशानी होना जैसे लक्षण पाए जाने पर तुरंत डॉक्टर को दिखा चाहिए।
प्ल्यूरल इफ्यूजन से बचाव के उपाय
- ध्रूमपान नहीं करें
- शराब का सेवन नहीं करें
- निमोनिया के इलाज में लापरवाही नहीं बरतें
- हार्ट फेलियर नहीं हो ध्यान रखें।
प्ल्यूरल इफ्यूजन का कैसे पता लगाएं
इस बीमारी का पता लगाने के लिए निम्न प्रकार की जांच होती है -
1. एक्स रे - सबसे पहले छाती का एक्स-रे किया जाता है। जिससे पता लगाने की कोशिश की जाती है कोई तरल पदार्थ तो नहीं है।
2. अल्ट्रासोनोग्राफी - इसकी मदद से पता लगाया जा सकता है कि परत पर किसी तरह का द्रव मौजूद तो नहीं है। अगर होता है तो उसका सैंपल लेकर उसकी जांच कर सकते हैं।
3. थेोरासेंटेसिस - इस प्रक्रिया में डाॅक्टर सुई की मदद से फेफड़ों से पानी को निकालता है। इस तरल पदार्थ की जांच की जाती है कि वह कैसा है, कितना गाढ़ा है। इस आधार पर डॉक्टर स्थिति का पता करता है।
उपरोक्त जांच के अलावा निम्न जांच भी की जाती है। जैसे - सीटी एंजियोग्राफी और बायोप्सी।