Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अब ‘डायबिटीज’ के मरीजों को नहीं गुजरना पड़ेगा ‘दर्द’ से, यह है शुगर की जांच का ‘नया तरीका’

हमें फॉलो करें अब ‘डायबिटीज’ के मरीजों को नहीं गुजरना पड़ेगा ‘दर्द’ से, यह है शुगर की जांच का ‘नया तरीका’
, गुरुवार, 15 जुलाई 2021 (17:25 IST)
डायबिटीज के मरीजों को डॉक्टर ब्लड शुगर की नियमित जांच करनी की सलाह देते हैं। ब्लड शुगर के जरिए डायबिटीज की जांच की जाती है। इस प्रकिया में ग्लूकोमीटर में मरीज की उंगली लगाकर ब्लड सैंपल लिया जाता है। इस दर्द से निजात दिलाने के लिए ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक अनोखी खोज की है।

वैज्ञानिको ने ब्लड शुगर टेस्ट करने के लिए एक तरीका निकाला है जिसमें उंगली में सुई चुभाने की जरूरत ही नहीं होगी। वैज्ञानिकों ने एक ऐसी पट्टी बनाई है जो सलाइवा यानी मुंह के लार से ब्लड शुगर की जांच कर लेगी। जाहिर तौर पर इससे सुई से होने वाले दर्द से छुटकारा मिल सकेगा।

डायबिटीज के मरीजों को अपने ब्लड स्तर की जांच करने के लिए ग्लूकोमीटर में बार-बार अपनी उंगली चुभोनी पड़ती है। इस प्रक्रिया में मरीजों को कई बार दर्द से गुजरना पड़ता है। इससे बचने के लिए कई बारी मरीज अपना टेस्ट भी टाल देते हैं।

ऑस्ट्रेलिया की न्यूकैसल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पॉल दस्तूर का कहना है कि इस नए तरीके से किए जाने वाले टेस्ट में एंजाइम एम्बेड हो जाते हैं। एक ट्रांजिस्टर में ग्लूकोज की पहचान की जा सकती है। ये शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को बताता है। इस टेस्ट में किसी तरह का दर्द नहीं होता है।

प्रोफेसर दस्तूर का कहना है कि नई ग्लुकोज टेस्टिंग दर्द रहित होने के साथ-साथ कम लागत वाली भी है और ये डायबिटीज के मरीजों को बेहतर रिजल्ट देगी। प्रोफेसर दस्तूर ने अल जजीरा को बताया, 'मुंह के लार में ग्लुकोज होता है। इस ग्लुकोज कंसंट्रेशन के जरिए ब्लड ग्लुकोज का भी पता आसानी से लगाया जा सकता है। हमें एक ऐसी टेस्टिंग बनानी थी जो कम लागत वाली हो, जिसे बनाना आसान हो और जिसकी संवेदनशीलता स्टैंडर्ड ग्लूकोज ब्लड टेस्ट से लगभग 100 गुना अधिक हो।

चूंकि ट्रांजिस्टर के इलेक्ट्रॉनिक सामग्री में स्याही होती है, इसलिए कम लागत पर प्रिंटिंग के जरिए इसका टेस्ट किया जा सकता है। प्रोफेसर दस्तूर ने कहा, 'हम जिन चीजों के साथ काम कर रहे हैं वो असाधारण हैं। ये इलेक्ट्रॉनिक इंक है जो इलेक्ट्रॉनिक सामग्री के तौर पर काम करती हैं। लेकिन अंतर यह है कि हम उन्हें रील-टू-रील प्रिंटर का उपयोग करके बड़े पैमाने पर प्रिंट कर सकते हैं, जैसा कि आप समाचार पत्र बनाने के लिए उपयोग करते हैं'

वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लिनिकल ट्रायल में पास होते ही इस पर काम शुरू हो जाएगा। प्रोफेसर दस्तूर का कहना है कि इस तकनीक के जरिए COVID-19 और एलर्जेन, हार्मोन और कैंसर की भी टेस्टिंग की जा सकती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Moral Stories Hindi: जब मर गया सम्राट का प्रहरी