Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हिन्दी सबकी लेकिन हिन्दी का कौन?

हमें फॉलो करें हिन्दी सबकी लेकिन हिन्दी का कौन?
जिस देश में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक कभी हिन्दी का ही बोलबाला रहा हो वहां आज इस भाषा को अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। लोग शायद यह भूल चुके हैं कि ब्रिटिश नौकरशाह लार्ड मॅकाले ने अपनी कूटनीति के तहत ही भारत पर अंग्रेजी थोपी थी और हमारी भाषा संस्कृति पर सुनियोजित ढंग से प्रहार किया। इसका असर यह हुआ कि अंग्रेजी शासक की भाषा बनी और हिन्दी को गुलामी का दर्जा मिला जो आज तक बदस्तूर जारी है।
 कम्प्यूटर में अब ऐसे भी सॉफ्टवेयर हैं जिसमें अपनी बात अंग्रेजी में लिखो और उसका हिन्दी रूप सामने आ जाता है। इसके अलावा धीरे-धीरे ही सही हिन्दी अपना अस्तित्व बढ़ाती जा रही है। विश्व की विभिन्न भाषाओं में अपना विशेष स्थान बनाने वाली इस भाषा को अहिन्दी भाषी राज्यों में पढ़ा और समझा भी जाने लगा है। एक तरफ हिन्दी आगे बढ़ रही है तो दूसरी तरफ हिन्दी की कक्षा में पढ़ने वाला छात्र जब अपने शिक्षक से कक्षा में प्रवेश की अनुमति चाहता है तो कहता है "मे आई कम इन सर"।

इसका दुःखद पहलू तो यह भी है कि जो लोग हिन्दी के विकास की बात करते हैं वे स्वयं भी इसका अनादर करने से बाज नहीं आते। आमतौर पर लोग कर्नाटक को कर्नाटका, केरल को केरला कहने में गर्व महसूस करते हैं। उसी प्रकार आम बोल-चाल की भाषा में हिन्दी के साथ अंगे्रजी का प्रयोग बढ़ रहा है और लोग दोष एक-दूसरे पर मढ़ रहे हैं लेकिन इसके लिए सार्थक प्रयास कहीं नहीं दिख रहे हैं। शासकीय कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने का आदेश तो दिया जाता है लेकिन इसका परिपत्र भी अंग्रेजी में लिखा जाता है। 
 
अंग्रेजी भाषा आज इतनी भारी हो गई है कि घर में छोटा बच्चा जब ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार की कविता सुनाता है तो सीना गर्व से फूल जाता है। पहले प्राथमिक कक्षा में हिन्दी की बारहखड़ी सिखायी जाती थी। इससे मात्राओं और शुद्ध उच्चारण का ज्ञान होता था। अब बच्चों में हिन्दी भाषा का ज्ञान औपचारिकता तक सिमट गया है। 
 
विशेष तौर पर युवाओं के बीच तो हिन्दी जैसे गुम सी होती जा रही है। युवा मानते हैं कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है और हमें इसे बोलना चाहिए, पर अच्छा करियर बनाने के लिए और बेहतर नौकरी के लिए अंग्रेजी का प्रयोग हमारी मजबूरी बन गया है। 
करने होंगे सामूहिक प्रयास 
 
पिछले एक वर्ष में हिन्दी की स्थिति में काफी सुधार आया है। लगभग दो वर्ष पूर्व तो ऐसा लगता था जैसे हिन्दी खो ही जाएगी। पर कई संस्थाओं के प्रयास से जैसे हिन्दी को एक नया जीवन मिला है। ये कहना है कॉलेज स्टूडेंट पूनम सिंह का। वे मानतीं हैं कि यदि हिन्दी को बचाना है, सहेजना है तो सभी को सामूहिक प्रयास करने होंगे। सिर्फ मुट्ठी भर लोग लाख चाहने के बाद भी कुछ विशेष नहीं कर पाएंगे। 
शर्म नहीं गर्व होना चाहिए
 
जब चीनियों को चीनी भाषा बोलने में शर्म नहीं लगती, जापानी अपनी मातृभाषा बोलते हैं तो हम क्यों नहीं। भारतीयों को हिन्दी बोलने में शर्म क्यों महसूस होती है। आजकल तो किसी बड़े कार्यक्रम में हो और अगर हिन्दी बोलो तो ऐसा लगता है जैसे कि कोई अपराध कर दिया हो। कॉलेज स्टूडेंट प्रशांत दुबे बताते हैं कि मैं हिन्दी बोलने में गर्व महसूस करता हूं। पर ये क्या बात हुई कि अपनी मां को छोड़कर दूसरे की मां की सेवा करना। जो लोग हिन्दी को छोड़कर पूरी तरह अंग्रेजी के गुलाम हैं वे बिलकुल ऐसा ही करते हैं। 
दोनों में संतुलन जरूरी 
 
आज के समय में अंग्रेजी का ज्ञान होना आवश्यक हो गया है। क्योंकि अंग्रेजी की अज्ञानता से हमारा करियर प्रभावित होता है। परन्तु इसका ये अर्थ कदापि नहीं है कि हम अपनी मातृभाषा को भूल जाएं। दीपक सोनी का कहना है कि जो लोग मानते हैं कि अंग्रेजी बोलने से स्टेटस बढ़ता है मैं उनसे कहना चाहूंगा कि अगर गुलामी करने से स्टेटस बढ़ता है तो जरूर बढ़ाएं। पर ऐसा करना अपने देश के साथ गद्दारी होगी। मैं तो कहूंगा कि दोनों भाषाओं का इतना अच्छा ज्ञान हो और बैलेंस हो कि कभी किसी भी बात से शर्मिंदा न होना पड़े। 
कॉलेज में करते हैं बंक 
 
किसी भी स्टूडेंट से छिपा नहीं है कि जब कोई काम होता है या प्रोजेक्ट का कोई काम पूरा करना होता है तब हिन्दी ही ऐसा विषय है जिसका बलिदान दे दिया जाता है और पीरियड बंक हो जाता है। स्टूडेंट तो स्टूडेंट टीचर भी इस सच्चाई से भली-भांति परिचित हैं। सीमा गुप्ता बताती हैं कि हिन्दी को बहुत आसान समझा जाता है जबकि ऐसा है नहीं। मैंने ही कई बार देखा है जब लगता है कि अगर हिन्दी के नंबर अच्छे आते तो प्रतिशत बढ़ सकता था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी दिवस : कब होगा अपनी भाषा का राज्याभिषेक