चाह नहीं, मैं मिर्ची के साथ धागे में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं कील में बिंध औघड़ को ललचाऊं
चाह नहीं सर्फ एक्सेल में डल कर पानी में घुल जाऊं
चाह नहीं विम बार में डल कर बर्तनों को चमकाऊं
चाह नहीं गन्ने के साथ पिस और भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस ठेले पर देना तुम फेंक
जिव्हा का स्वाद बढ़ाने,पोहे खाने जिस पथ जावे वीर अनेक....