जयंत बाबू सचिवालय से सेवानिवृत्त हुए हैं।
वह और उनकी पत्नी एक फ्लैट में रहते हैं।
उन्होंने दशहरा में शिमला मनाली जाने की योजना बनाई।
बाहर जाने से पहले जयंत बाबू ने सोचा कि अगर उनकी गैरमौजूदगी में कोई चोर घुस गया तो वो घर की सारी अलमारी और पेटी तोड़ कर
क्षतिग्रस्त कर देंगे क्योंकि कोई नकद नहीं मिलेगा।
इसलिए उन्होने घर को बर्बाद होने से बचाने के लिए 1000 रुपये टेबल पर रख दिए।
एक संवाद के साथ जिसमें लिखा था :
हे अजनबी, मेरे घर में प्रवेश करने के लिए आपने कड़ी मेहनत की इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई।
लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की हम शुरू से मध्यम वर्गीय परिवार हैं और हमारा परिवार पेंशन के थोड़े से पैसे से चलता है। इसलिए हमारे पास कोई अतिरिक्त नकदी नहीं है।
मुझे सच में बहुत शर्म आ रही है कि आपकी मेहनत और आपका कीमती समय बर्बाद हो रहा है।
इसलिए मैंने आपकी पैरों की धूल के सम्मान में यह थोड़े से पैसे मेज पर छोड़ दिए हैं।
कृपया इसे स्वीकार करें।
और मैं आपको आपके बिजनेस को बढ़ाने के कुछ तरीके बता रहा हूं।
आप कोशिश कर सकते हैं।
सफलता मिलेगी।
मेरे फ्लैट के सामने आठवीं मंजिल पर एक बहुत प्रभावशाली मंत्री रहता है।
नामी प्रॉपर्टी डीलर सातवें माले में रहता है।
सहकारी बैंक के अध्यक्ष छठे तल पर रहते हैं।
पांचवी मंजिल पर प्रमुख उद्योगपति।
चौथी मंजिल पर नामी महाराज जी हैं।
व तीसरी मंजिल पर एक भ्रष्ट राजनीतिक नेता हैं।
उनका घर गहनों और नकदी से भरा है।
मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं की आपकी व्यावसायिक सफलता उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगी और उनमें से कोई भी पुलिस को रिपोर्ट नहीं करेगा।
यात्रा के बाद जब जयंत बाबू और उनकी पत्नी वापस लौटे तो उन्हें टेबल पर एक बैग रखा मिला।
बैग में 1 लाख रुपए नकद और एक पत्र रखा देखकर वह हैरान रह गये।
पत्र पर लिखा था:
आपके निर्देश और शिक्षा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर...
मुझे इस बात का अफ़सोस है की मैं पहले क्यों आपके करीब नहीं आ पाया।
आपके निर्देशानुसार मैंने मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया। मैंने इस छोटी सी राशि को गुरु दक्षिणा स्वरूप धन्यवाद के साथ छोड़ दिया है।
भविष्य में भी मैं आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन की कामना करता हूं...
आपका भवदीय - चोर