यही चाट अंतिम यही चाट भारी
बस एक रात की अब कहानी है सारी,
यही चाट अंतिम यही चाट भारी
नहीं बन्धु बांधव न कोई सहायक,
अकेला है गुमटी पे गुमटी का नायक,
सभी रत्न बहुमूल्य सपने में आए,
लॉकडाउन में कुछ खा भी न पाए
चटोरा इसी सोच में जग रहा है,
कि ठेले पे किसके क्या मिल रहा है
कहाँ पर मिलेगी वो टिक्की हमारी
यही चाट अंतिम .. यही चाट भारी ..
हो भगवान मानव तो समझेगा इतना
कि चटनी समोसे में रस होता कितना,
विजय अंततः हम चटोरों की होती
पर
इतना सहज भी नहीं है ये मोती
बहुत हो चुकी इस जिव्हा की हानि
पहुँच जाए परिणाम तक अब ये कहानी ..
अब जाकर आई है मोमो की बारी
यही चाट अंतिम .. यही चाट भारी ..
नहीं खाया कुछ भी इक युग है बीता
जूली, पुष्पा, या सरला, विनीता
ये तड़पन हमारी कहीं तो मिटेगी
ये छूट मिली कल रहे न रहेगी ..
कहाँ सात तरह का पानी मिलेगा
ये इच्छा कुसुम अब कहाँ पे खिलेगा ..
कि टपकी जाती है लार बेचारी
यही चाट अंतिम .. यही चाट भारी ..
ये एक रात मानो युगों से बड़ी है
चटोरे के
धीरज कि अंतिम कड़ी है ..
प्रतीक्षा का विष और कितना पियेगी
बिना पेटिज़ देह कैसे जियेगी ..
ओ चाऊमीन वाले अब आ भी जाओ
दिखाओ दरस अब न इतना
रुलाओ ..
कि बाड़े पर आई कचौड़ी वो प्यारी
यही चाट अंतिम .. यही चाट भारी ..
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श्री रघुवीर भक्त हितकारी, सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी,
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई, ता सम भक्त और नाहिं होई.
रविन्द्र जैन अंकिल जी से माफ़ी माँगते हुए....(फेसबुक से साभार)