लोग पता नहीं अपनी बीवियों से इतना डरते क्यों हैं...???
अपन तो इस मामले में भैया...
राजा हैं अपने घर के......
ठंडे पानी से बर्तन धोने का मूड हो, तो ठंडे से ही धोएंगे...
गरम का मूड हो, तो गरम से......
ज्यादा तो किसी की सुनी ही नहीं आजतक...
पोछा फिनायल का लगेगा या लाइजोल का ये भी अपन खु़द ही डिसाइड करते हैं......
बीवी की इतनी हिम्मत ही नहीं, कि चूं भी कर जाए.......
सुबह चाय बनाकर जब बीवी को जगाते हैं तो ये हम निर्णय लेते हैं कि वो चाय बेड में बैठे-बैठे पिएगी या ड्राइंग रूम में या फिर बालकनी में....
मजाल है जो अपने निर्णय की खिलाफत हो....
कपडे सर्फ़ एक्सेल से धुले जाने हैं या टाइड से...?
वहां भी अपनी ही सल्तनत चलती है......
उस बारे में बीवी को इतना पिछड़ा बना रखा है कि उसे वाशिंग मशीन तक चलानी नहीं आती....
झाडू तीलियों वाले झाडू से मारना है या फूल वाले से....ये फर्श का मुआयना करने के बाद बादशाह हज़रत खुद डिसाइड करते हैं...
खाने में हमें कब क्या बनाना है इस बारे में बीवी कौन होती है कुछ कहने वाली...
हमारी जो मर्जी होगी उससे पूछकर हम ही बनाएंगे....
कांच पानी के गीले कपडे से साफ़ होने हैं या कोलीन से इस बारे में बहस की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है अपने घर में....
सन्डे को टॉयलेट सुबह साफ़ होगा या शाम को ये भी हम ही फिक्स करते हैं... जाले और पंखे कब-कैसे साफ करने हैं लंबी झाड़ू या वैक्यूम क्लीनर से, इस पर भी समय और अपनी उपलब्धता को देखते हुए पूर्ण एकाधिकार है अपना ...
भई घर के सभी अहम् और बड़े फैसले लेना ही तो पतियों की शान है....
अब जलने वालों का क्या है जी...
उनका तो काम ही है जलना...
लेकिन भाई अपनी जैसी किस्मत और हौसला इंसान लेकर पैदा होता है ...
अब आप लोग निराश मत होना क्योंकि मेरा मकसद ना तो आपको जलाना है और ना ही आपका मनोबल तोड़ने का है...