वर्मा जी की काम वाली बाई 15 दिन से नहीं आ रही थी.....
हर दिन बर्तन धोने से वर्मा जी बेहाल हो गए थे, आजू बाजू वालों को बोल के रखा था कि कोई बाई हो तो भेजना.... हालत खराब है....
फिर एक दिन......
दिन के बर्तन मांज कर वर्मा जी सुस्ता ही रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजी.... देखा पड़ोसन एक बाई के साथ खड़ी है....
वर्मा जी ने आदर सहित अंदर बुलाया......वर्मा जी डाइनिंग रूम में बैठ गए और पडोसन बाई को लेकर भाभीजी के साथ रसोई में चली गई.....
पडोसन के प्रति कृतज्ञता के बोध से वर्मा जी की आंखें भर आई वो यकीन नहीं कर पा रहे थे कि आज के युग में भी ऐसे लोग हैं जो दूसरों की तकलीफ समझते हों खैर,थोड़ी देर बाद तीनों बाहर आए और पडोसन बाई को लेकर अपने घर चली गई.... शायद काम दिखाने आई होगी, शायद मिलवाने लाई होगी, पैसे वैसे का फाइनल करने आई होगी,
इसी उधेड़बुन में वर्मा जी ने भाभीजी से पूछा:-
"कब से आएगी ये कितने पैसे मांग रही है?"
"कौन कब से आ रही है और काहे के पैसे मांगेगी?"
"अरे भाई,बाई कब से आएगी काम पर और कितने पैसे में फाइनल किया"
भाभीजी बोली:-
ओ हैलो!!! कोई बाई वाई नहीं आ रही उसे तो पडोसन ये दिखाने लाई थी कि बर्तन ऐसे ही साफ मांजने हैं....