रमन (अपने दोस्त चमन से)- भगवान का दिया सब कुछ है...
साबुन है,
बाल्टी है,
मग है,
तौलिया है,
पानी है पर नहाने की हिम्मत नहीं है।
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चमन बोला- वैसे भी यार,
नहाने से कुछ होता नहीं,
बस आदमी दिल का साफ होना चाहिए।
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रमन बोला- हां यार,
इतनी सर्दी में नहाना तो बाबा,
अपनी समझ से तो बाहर है।
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फिर चमन ने उसके वाक्य को
कुछ इस तरह पूरा किया-
हां, सही कहा दोस्त...
जिस शब्द में ही आगे 'न' है
और पीछे ना है
तो बीच में ये दुनिया
'हां' कराने पर क्यों तुली है ??
हा...हा...हा...