Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शैली बक्षी की किताब सुनो नीलगिरी पर हुई चर्चा

कहानी संग्रह 'सुनो नीलगिरी' पर पुस्तक चर्चा

हमें फॉलो करें book review

WD Feature Desk

, सोमवार, 13 मई 2024 (16:35 IST)
Book Review
'कहानी जब अपने आसपास की सी लगे, खुद अपनी सी लगे तो यह कथाकार की सफलता होती है और जब कथा संग्रह की कहानियां आपके जीवन के कई पहलुओं को छूकर गुजरे। इन कसौटियों पर खरी उतरती कथाकार की कहानियां बड़ी परिपक्व है। इन्हें पढ़कर लगता ही नहीं है कि ये किसी नई लेखिका की हैं और यह उनका पहला कथा संग्रह है।

एक कुशल पायलट की तरह कथाकार का भी कहानियों के टेकऑफ और लैंडिंग पर नियंत्रण होना चाहिए और इन कहानियों में यह बात बखूबी उभरती है कि जितनी कुशलता से ये आसमान छूती हैं उतनी ही सहजता से अंत में जमीन पर लौट भी आती हैं।'
 
यह बात सुप्रसिद्ध कथाकार और शिवना प्रकाशन के प्रमुख पंकज सुबीर ने कही, वे शैली बक्षी खड़कोतकर के पहले कहानी संग्रह 'सुनो नीलगिरी' पर केंद्रित पुस्तक चर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में विचार रख रहे थे।
 
वामा साहित्य मंच के बैनर तले 11 मई को अपना एवेन्यू में आयोजित इस कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि कहने और सुनने के आसपास ही दुनिया घूमती है। लेखकीय वक्तव्य से लेकर पुस्तक के अंत तक कहने और सुनने के बीच की ये कहानियां शैली जी की विशिष्ट शैली में है। एक-एक कहानी अपने संदेश को लेकर स्पष्ट है। इन कहानियों में कुछ जगहों पर मालवी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है वह भी अद्भुत है। उन्होंने कहा 'सुनो नीलगिरी' कहानी पूरे संग्रह का निचोड़ की तरह सामने आती है
 
आयोजन में चर्चाकार के रूप में शामिल साहित्यकार डॉ। किसलय पंचोली ने 'सुनो नीलगिरी' को आकर्षक संग्रह बताते हुए कहा कि इसमें संकलित कहानियों की अपनी विशेष मनमोहक लेखन शैली है। कहानियों में अच्छे संदेश गूंथे हैं जो कहीं भी उपदेशात्मक नहीं लगते।
 
कथाकार डॉ. गरिमा संजय दुबे ने कहा- इन कहानियों का शिल्प इसकी खासियत है। बड़े मुद्दों को भी जिस सहजता से शैली ने उठाया है वह देखकर मैं चकित हुई कि बिना किसी शोर शराबे के भी कोई हंसते हंसते गंभीर मुद्दे को स्पष्ट किया जा सकता है।

कहानियां बोझिल नहीं हैं, इनमें बौद्धिकता का रूखापन नहीं है, भावभूमि के आधार पर जटिल समस्याओं का चुटकी बजाते हल है। पढ़ते हुए अचानक अहसास होता है कि अरे जीवन सच में बहुत सरल है यदि उसे अनावश्यक तर्कों और बौद्धिकता के अजीर्ण से बचाया जा सके। स्त्री विमर्श के भ्रमित सिपाहियों को यह कहानियां अवश्य पढ़नी चाहिए।
 
मनोगत व्यक्त करते हुए शैली बक्षी खड़कोतकर ने कहा कि हर शब्द, हर किताब अपनी नियति साथ लेकर आती है और 'सुनो नीलगिरी' का सौभाग्य चकित करने वाला है। अनायास मिले किरदारों के मन को सुनने और साझा करने की प्रक्रिया में कहानी घटित हुई। 'मन' को सुनने में इस आग्रह से मुक्त रही कि यह स्त्री मन है, पुरुष मन है या बाल मन, इसीलिए संग्रह में विविध भाव शामिल हो सके।
 
अतिथियों का स्वागत रवींद्र बक्षी, अनीता बक्षी, मधुकर खड़कोतकर, किशोर खड़कोतकर, विनय शुजालपुरकर, सुभाष चम्पक और प्रीतिश कापसे ने किया। वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष इंदु पाराशर ने स्वागत उद्बोधन दिया। प्रस्तावना ज्योति जैन ने रखी। संचालन स्मृति आदित्य ने किया व सरस्वती वंदना विभा भटोरे ने प्रस्तुत की। आभार वेदांत खड़कोतकर ने माना।इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दादी-नानी की भोजन की ये 8 आदतें सेहत के लिए हैं बहुत लाभकारी