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ऐसे लिखिए गुरु पूर्णिमा पर आदर्श निबंध, गुरु की महिमा का इतना सुन्दर वर्णन पढ़ हर कोई हो जाएगा मुग्ध

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 8 जुलाई 2025 (13:11 IST)
essay on guru purnima in hindi: भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है। 'गुरु' शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है - 'गु' का अर्थ है अंधकार और 'रु' का अर्थ है प्रकाश। इस प्रकार, गुरु वह है जो अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु केवल शिक्षा देने वाला व्यक्ति नहीं होता, बल्कि वह जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन करने वाला, प्रेरणा देने वाला और सही राह दिखाने वाला होता है।

जीवन में गुरु की महिमा
जीवन में गुरु की महिमा अतुलनीय है। गुरु एक ऐसा मार्गदर्शक होता है जो हमें न केवल किताबी ज्ञान देता है, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों से भी परिचित कराता है। वह हमें सही-गलत का भेद सिखाता है, नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाता है और हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करता है। गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है और जीवन की राहें कठिन।

गुरु हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। जब हम किसी असमंजस में होते हैं, तो गुरु का मार्गदर्शन हमें सही निर्णय लेने में सहायता करता है। वे हमारे भीतर छिपी क्षमताओं को पहचानते हैं और हमें उन्हें निखारने का अवसर देते हैं। गुरु की कृपा से ही व्यक्ति अज्ञानता के बंधनों से मुक्त होकर आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकता है। वे हमें केवल भौतिक सफलता ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करते हैं। गुरु का सान्निध्य हमें विनम्रता, धैर्य और सहनशीलता जैसे गुणों से परिपूर्ण करता है। वे हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देते हैं और असफलता में भी हमें उठ खड़े होने की प्रेरणा देते हैं।

गुरु और शिक्षक में अंतर
अक्सर लोग गुरु और शिक्षक को एक ही मान लेते हैं, लेकिन भारतीय परंपरा में इन दोनों के बीच एक सूक्ष्म और महत्वपूर्ण अंतर है।
शिक्षक (Teacher): शिक्षक वह व्यक्ति होता है जो हमें किसी विशेष विषय या कौशल का ज्ञान प्रदान करता है। उनका कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से शैक्षणिक होता है। वे हमें पाठ्यक्रम से संबंधित जानकारी देते हैं, परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने में मदद करते हैं और हमें एक विशिष्ट क्षेत्र में दक्ष बनाते हैं। एक शिक्षक का संबंध छात्रों के साथ अक्सर औपचारिक होता है और उनका प्रभाव कक्षा तक सीमित हो सकता है। वे ज्ञान के एक विशिष्ट क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं और उस ज्ञान को व्यवस्थित तरीके से प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, एक गणित का शिक्षक आपको गणित के सूत्र सिखाएगा, एक भाषा का शिक्षक आपको व्याकरण और साहित्य का ज्ञान देगा। उनका उद्देश्य छात्रों को सूचना और कौशल से लैस करना है ताकि वे अपने शैक्षणिक या व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।

गुरु (Guru): इसके विपरीत, गुरु का संबंध शिष्य के साथ कहीं अधिक गहरा और व्यापक होता है। गुरु केवल किताबी ज्ञान नहीं देते, बल्कि वे शिष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। वे शिष्य को जीवन जीने की कला सिखाते हैं, नैतिक मूल्यों का संचार करते हैं और उसे आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करते हैं। गुरु का संबंध शिष्य के साथ आजीवन रहता है, और वे शिष्य के जीवन के हर पहलू पर प्रभाव डालते हैं। गुरु शिष्य के भीतर छिपी बुराइयों को दूर करते हैं और उसे एक पूर्ण मानव बनाने का प्रयास करते हैं। गुरु का मार्गदर्शन केवल शैक्षणिक नहीं होता, बल्कि वह जीवन-दर्शन, नैतिकता, धर्म और आध्यात्मिकता तक फैला होता है। गुरु अपने शिष्य को केवल 'क्या' पढ़ना है यह नहीं बताते, बल्कि 'कैसे' जीना है यह भी सिखाते हैं। उनका उद्देश्य शिष्य को आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जाना होता है। गुरु एक शिष्य के लिए पिता, माता, मित्र और मार्गदर्शक सभी की भूमिका निभाते हैं। संक्षेप में, शिक्षक आपको जानकारी देता है, जबकि गुरु आपको ज्ञान और जीवन का सार समझाता है। शिक्षक आपके दिमाग को प्रशिक्षित करता है, जबकि गुरु आपके आत्मा को पोषित करता है।

गुरु का भारतीय संस्कृति में महत्त्व
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का एक अद्वितीय और पवित्र स्थान है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसने भारतीय समाज, ज्ञान और धर्म को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्राचीन काल से ही भारत में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है। एक प्रसिद्ध श्लोक है: "गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।" इसका अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर हैं; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं, ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। यह श्लोक गुरु के सर्वोच्च स्थान को दर्शाता है।

गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय शिक्षा प्रणाली की रीढ़ रही है। गुरुकुलों में शिष्य गुरु के साथ रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे, जहाँ उन्हें न केवल वेदों, शास्त्रों और कलाओं का ज्ञान दिया जाता था, बल्कि उन्हें अनुशासन, सेवा, त्याग और समर्पण जैसे मानवीय मूल्यों का भी पाठ पढ़ाया जाता था। इस परंपरा ने ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अखंड रूप से हस्तांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

गुरु को ज्ञान का स्रोत, सत्य का प्रतीक और मोक्ष का मार्गदर्शक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुओं के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक विशेष दिन है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें उपहार अर्पित करते हैं। यह दिन गुरु-शिष्य के पवित्र रिश्ते को और मजबूत करता है। गुरु का महत्व केवल आध्यात्मिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी उनका गहरा प्रभाव होता है। वे समाज में ज्ञान और नैतिकता का प्रसार करते हैं, जिससे एक सुसंस्कृत और सभ्य समाज का निर्माण होता है।

भारतीय संस्कृति के महान गुरु और उनके शिष्य
भारतीय संस्कृति ऐसे अनगिनत महान गुरुओं और उनके शिष्यों की कहानियों से भरी पड़ी है, जिन्होंने अपनी शिक्षाओं और उदाहरणों से समाज को प्रेरित किया है:
• महर्षि वेदव्यास: इन्हें आदिगुरु माना जाता है। इन्होंने वेदों का संकलन किया और महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की। इनके अनेक शिष्य थे, जिन्होंने इनके ज्ञान को आगे बढ़ाया।
• महर्षि वशिष्ठ और भगवान राम: महर्षि वशिष्ठ भगवान राम के कुलगुरु थे। उन्होंने राम को धर्म, राजनीति और युद्ध कला का ज्ञान दिया। राम ने अपने गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा और आज्ञाकारिता का प्रदर्शन किया, जिससे वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।
• महर्षि विश्वामित्र और भगवान राम-लक्ष्मण: विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को अनेक दिव्यास्त्रों का ज्ञान दिया और उन्हें राक्षसों का संहार करने की शक्ति प्रदान की। उनके मार्गदर्शन में ही राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध किया।
• द्रोणाचार्य और अर्जुन: महाभारत काल में द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। वे धनुर्विद्या के महान आचार्य थे। अर्जुन उनके सबसे प्रिय और सर्वश्रेष्ठ शिष्य थे, जिन्होंने गुरु के प्रति अपनी अटूट भक्ति और समर्पण का परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाया।
• चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य: आचार्य चाणक्य एक महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे। उन्होंने एक साधारण बालक चंद्रगुप्त को मगध का सम्राट बनाया और अखंड भारत की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चाणक्य का मार्गदर्शन और चंद्रगुप्त की निष्ठा गुरु-शिष्य परंपरा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
• आदि शंकराचार्य और उनके शिष्य: आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के दर्शन को पुनर्जीवित किया और भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। उनके अनेक शिष्य थे जिन्होंने उनके ज्ञान को पूरे भारत में फैलाया।
• समर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी महाराज: समर्थ रामदास छत्रपति शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने शिवाजी को धर्म, राष्ट्रभक्ति और सुशासन का पाठ पढ़ाया, जिससे शिवाजी ने एक शक्तिशाली मराठा साम्राज्य की स्थापना की।
• स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद: आधुनिक काल के महान गुरु-शिष्य जोड़ी में स्वामी रामकृष्ण परमहंस और उनके प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद का नाम आता है। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को आध्यात्मिक ज्ञान दिया और उन्हें मानवता की सेवा के लिए प्रेरित किया। विवेकानंद ने अपने गुरु के संदेश को पूरे विश्व में फैलाया और भारतीय संस्कृति का परचम लहराया।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि गुरु-शिष्य परंपरा ने कैसे भारतीय इतिहास और समाज को समृद्ध किया है। गुरुओं ने न केवल ज्ञान प्रदान किया, बल्कि अपने शिष्यों के चरित्र का निर्माण भी किया, जिससे वे अपने-अपने क्षेत्रों में महान कार्य कर सके।

गुरु जीवन का वह प्रकाश स्तंभ है जो हमें अंधकार से निकालकर सही मार्ग पर ले जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान माता-पिता और ईश्वर से भी ऊपर माना गया है, क्योंकि गुरु ही हमें ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं। गुरु और शिक्षक में अंतर को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि गुरु का संबंध शिष्य के संपूर्ण अस्तित्व से होता है, जबकि शिक्षक का संबंध विशिष्ट ज्ञान से। गुरु-शिष्य परंपरा ने भारतीय ज्ञान, नैतिकता और आध्यात्मिकता को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखा है। जीवन में एक सच्चे गुरु का होना परम सौभाग्य की बात है, क्योंकि वही हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाता है। गुरु का आशीर्वाद ही हमें जीवन में वास्तविक सफलता और शांति प्रदान करता है।


 

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