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गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘Tomb of Sand’ ने जीता अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार

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लेखिका गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘Tomb of Sand’ ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीत लिया है। गीतांजलि श्री की यह पुस्तक मूल रूप से हिंदी में ‘रेत समाधि’ के नाम से प्रकाशित हुई थी। जिसका अंग्रेजी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’, डेजी रॉकवेल ने किया है और जूरी के सदस्यों ने इसे ‘शानदार और अकाट्य’ बताया है।
 
वहीं, 50,000 पाउंड के साहित्यिक पुरस्कार के लिए पांच अन्य पुस्तकों से इसकी प्रतिस्पर्धा थी। पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच विभाजित की जाएगी।
 
ये पुस्तकें थीं शामिल
लंदन पुस्तक मेले में घोषित अन्य चयनित पांच किताबों में बोरा चुंग की ‘कर्स्ड बनी’भी थी। जिसे कोरिया से एंटोन हूर ने अनुवाद किया है। इसके अलावा जॉन फॉसे लिखित ‘ए न्यू नेमः सेप्टोलॉजी V1-V11’ भी इस दौड़ में थी, जिसे नार्वेई भाषा से डेमियन सियर्स ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है।
 
इसके अलावा मीको कावाकामी की पुस्तक ‘हेवेन’ भी इस दौड़ में थी, जिसका जापानी सैमुअल बेट और डेविड बॉयड ने संयुक्त रूप से अनुवाद किया है तो वहीं, क्लाउडिया पिनेरो की ‘एलेना नोज़’ का अनुवाद स्पेनिश से फ्रांसिस रिडल ने किया है और ओल्गा टोकार्ज़ुक की पुस्तक ‘द बुक्स ऑफ जैकब’ को पोलिश भाषा से जेनिफर क्रॉफ्ट ने अनुवाद किया गया हैं।
 
गीतांजलि श्री हिन्दी की एक जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं, जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की निवासी हैं। वहीं, प्रारंभिक शिक्षा मैनपुरी से होने के उपंरात वो दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल कीं।
 
इसके बाद महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि अर्जित की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ. टरल रिसर्च के लिए गईं। इस दौरान उन्होंने कहानियां लिखनी शुरू कीं।
 
उनकी पहली कहानी ‘बेलपत्र’ 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी दो और कहानियां एक के बाद एक ‘हंस’ में छपीं। अब तक उनके पांच उपन्यास – ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’, ‘खाली जगह’, ‘रेत-समाधि’ प्रकाशित हो चुके हैं। वहीं, पांच कहानी संग्रह- ‘अनुगूंज’,’वैराग्य’,’मार्च, मां और साकूरा’, ‘यहां हाथी रहते थे’ और ‘प्रतिनिधि कहानियां’ प्रकाशित हो चुकी हैं।

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