शिवानी गीते
हम जिस देश में रहते हैं, वहां हर परिवार के दिन की शुरुआत एक कप गरमागरम चाय से ही होती है। सुबह-सुबह एक कप चाय मिल गई, तो मानो जन्नत नसीब हो गई। सिर्फ सुबह ही नहीं, चाय का यह सिलसिला सारा दिन ही चलता रहता है। कोई मेहमान आया तो बाहर से शर्मा जी की आवाज आती है, अरे गोलू की मम्मी, जरा दो कप चाय तो ले आओ।
जब वर्मा जी का सिर दर्द शुरू हो जाए, तो वर्मा जी की पत्नी फटाफट अदरक वाली चाय तैयार रखती हैं, अगर घर में किसी को सर्दी जुखाम हो जाए तो उसका निवारण भी तुलसी वाली चाय है, कुल मिलकर हमारा जीवन चाय के बिना मुमकिन ही नहीं है। और तो और हमारे बड़े बुजुर्गों को तो चाय की इतनी आदत होती है की उन्हें हर दो घंटे में चाय चाहिए। अगर घर में बच्चों का गला खराब हो, तो दादाजी की हिदायत मिल ही जाती है - बच्चे अदरक और तुलसी डालकर चाय पी लो, अभी इस बैठे हुए गले से फट-फट बोलने लगोगे।
अब तो भइया चाय पर चर्चा होने लगी है। कोई भी बड़े राजनैतिक मुद्दे पर बात करने बैठे नेताजी बोल ही पड़ते हैं - अरे! छोटू जरा चाय तो दे दे। अब जनाब बड़े बड़े राजनैतिक मुद्दे चाय के बिना हल होते हैं क्या भला! चाहे अमीर हो या गरीब, रिटायर्ड शर्मा जी हो या मंत्रालय में काम करते नेताजी, चाय तो सबके जीवन का महत्वपूर्ण अंग है।
जी, अब चाय ठहरी सबकी सेठ, सभी जूस कोल्ड्रिंक भी इसके आगे फ़ैल है। आजकल तो तरह तरह की चाय बनने लग गई है। वो क्या कहते हैं, चाय की अलग अलग वैरायटी आ गई है। कामकाजी बड़ी-बड़ी कंपनी में काम करने वाले लोगों को ब्लैक टी चाहिए, तो फिल्मी सितारों और विश्व सुंदरियों को अपनी सुंदरता बनाए रखने के लिए ग्रीन टी। और तो और पांच सितारा होटलों में लेमन टी भी मिलती है, पर हमारे रिटायर्ड हो चुके अंकल और घर की भागदौड़ अपनी बहुओं को थमा चुकी आंटी को लेमन टी कहां समझ आती है! उनके हिसाब से तो भइया अगर दूध में नींबू डाल दिया तो दूध फट जाएगा! उन्हें तो बस दूध में शक्कर, चाय की पत्ती और अदरक डालकर जो बन जाए वही चाय अमृत है उनके लिए तो। हम भी अब क्या बोलें, मान ही लेते हैं- "चाय मतलब चाय ही है"।