लेखकों की किताबों की रॉयल्टी को लेकर हमेशा हिन्दी साहित्य में बात और विवाद की स्थिति रही है, खासतौर से हिन्दी लेखकों को लेकर। इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में इस विषय पर भी बात हुई।
'हैलो हिन्दुस्तान' के संपादक के मंच से सवाल उठा तो कहा गया कि वे लेखकों को जब साहित्य उत्सव में बुलाते हैं, तो उन्हें आने-जाने का किराया और ठहरने के लिए अच्छी होटल उपलब्ध कराते हैं। जहां तक संभव होता है, वहां तक उन्हें मानदेय भी देते हैं चाहे वो 21 हजार या 51 हज़ार ही क्यों न हो। ऐसे में लेखकों को भी रॉयल्टी मिलनी चाहिए, क्योंकि इसके लिए अक्सर विवाद सामने आते रहे हैं। इस सवाल पर वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी का कहना था कि लेखक अच्छा लिखें तो उन्हें रॉयल्टी देने में भी कोई गुरेज नहीं है।
दरअसल, हिन्दी साहित्य में हिन्दी लेखकों को बड़े आयोजनों में बुलाया जाता रहा है, उनसे साहित्य चर्चा से लेकर देश के तमाम मुद्दों पर बात की जाती है, लेकिन उनकी किताबों की रॉयल्टी और उनके खर्चे को लेकर अब भी कोई खुलकर बात नहीं होती है। इसके विपरीत अंग्रेजी भाषा के लेखक इस मामले में काफी प्रोफेशनल हैं। वे ऐसे फेस्टिवल में जाने की एवज में अपने मानदेय या फीस के बारे में खुलकर बात करते हैं, लेकिन हिन्दी लेखकों की तरफ से अभी यह झिझक दूर नहीं हुई है। इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल के मंच से यह विषय उठना काफी सुखद होगा हिंदी लेखक और साहित्य के लिए।