कमरे में कोई नहीं था। एक स्ट्रेचर था, जिस पर एक लाश पड़ी थी। सिराजुद्दीन छोटे-छोटे कदम उठाता उसकी तरफ बढ़ा। कमरे में अचानक रोशनी हुई। सिराजुद्दीन ने लाश के जर्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया-सकीना
डॉक्टर, जिसने कमरे में रोशनी की थी, ने सिराजुद्दीन से पूछा, क्या है?
सिराजुद्दीन के हलक से सिर्फ इस कदर निकल सका, जी मैं…जी मैं…इसका बाप हूं।
डॉक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई लाश की नब्ज टटोली और सिराजुद्दीन से कहा, खिड़की खोल दो।
सकीना के मुर्दा जिस्म में जुंबिश हुई। बेजान हाथों से उसने इज़ारबंद खोला और सलवार नीचे सरका दी। बूढ़ा सिराजुद्दीन खुशी से चिल्लाया, जिंदा है-मेरी बेटी जिंदा है?
यह सआदत हसन मंटो की कहानी ‘खोल दो’ का अंतिम हिस्सा है। मंटो की इस कहानी के क्लाइमैक्स में वे यह कहना चाहते हैं कि सकीना के साथ जिंदा रहते हुए इतनी बार बलात्कार होता है कि उसके मरने के बाद जब उसकी लाश को ‘खोल दो’ शब्द सुनाई आता है तो सकीना की लाश भी सिहर जाती है और वो इज़ारबंद खोलकर सलवार को नीचे सरका देती है। कहानियों के इतिहास में ‘खोल दो’ एक ऐसी कहानी हो गई है, जिसे दोबारा पढ़ने के लिए हिम्मत चाहिए। कहानी के खत्म होने के ठीक बाद की सिरहन भी मंटो की कहानियों की तरह हमेशा याद रह जाती है।
कहानी में इस कदर की सिरहन सिर्फ सआदत हसन मंटो ही पैदा कर सकते थे। दरअसल, अपने आसपास की स्थितियों की वजह से मंटो लेखक बने थे। चाहे वो 7 साल की उम्र में जलियावाला बाग का हत्याकांड देखना हो या फिर अपनी आंखों के सामने भारत का बंटवारा ही क्यों न हो। उन पर इन दोनों घटनाओं का असर हुआ था, जो उनकी कहानियों में नजर आता है।
बंटवारे ने उन्हें अंदर तक तोड़कर रख दिया। हालांकि विभाजन के बाद पाकिस्तान में जाकर रहने पर उन्हें वहां घुटन होती थी क्योंकि पाकिस्तान एक कट्टर मूल्क में तब्दील हो गया था। शायद यही वजह रही होगी कि उनकी कहानियों में भी घटनाओं की वही सिरहन और घुटन थी। उनके किरदार भी विभाजन और दंगों के इर्दगिर्द नजर आते हैं।
बंटवारे के परिदृश्य में लिखी गई उनकी कहानी टोबा टेक सिंह में वही दर्द और घुटन था। वे लिखते हैं’ वह आदमी जो पंद्रह बरस तक दिन रात अपनी टांगों पर खड़ा रहा, औंधे मुह लेटा हैं। उधर, ख़ारदार तारों के पीछे हिन्दुस्तान था, इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान। इनके दरमियान जमीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था।
सआदत हसन मंटों की कहानियों में कोई चमत्कारिक या किसी दूसरे ग्रह के बिंब नहीं हैं, वो अपने आसपास की जिंदगी से ही किरदारों और बिंब को उठाते हैं। वे रिश्तों का कीचड़ लिखते हैं, तो कभी शर्मसार कर देने वाली इंसानियत के बारे में। गलीज किरदारों से लेकर चरित्रहीन स्त्रियों तक के बीच उनका लेखन चलता रहता है। वे ठीक वैसा ही लिखते हैं, जैसा है, जैसा नजर आता है। किसी घटना में किसी चीज की मात्रा कम या ज्यादा नहीं होती है। जो बिल्कुल साफ नजर आता है उसे उकेरना और जो बिल्कुल छुपा हुआ है उसे उजागर करना ही मंटो का लेखन है।
मंटों की कहानियों को अश्लील करार देकर उन्हें खूब बदनाम भी किया गया। लेकिन इसी बदनामी ने उन्हें मशहूर भी कर दिया। एक दिन वो आया जब वो शीर्ष लेखकों में आकर खड़े हो गए। हालांकि साहित्य समाज का एक हिस्सा उन्हें बड़ा लेखक नहीं मानता है। लेकिन इस असहमति से मंटो की हैसियत को फर्क नहीं पड़ता है। उनकी कहानियों के 22 संग्रह प्रकाशित हुए हैं, इसके अलावा, उनके नाम पर एक उपन्यास, पांच नाटक और निबंधों के तीन संग्रह भी प्रकाशित हैं।
इस प्रसिद्धि के बावजूद अंग्रेजी शासन में मंटों पर 6 बार अश्लील कहानियां लिखने के आरोप के बाद मुकदमा चला। इसमें से तीन बार पाकिस्तान में उन पर मुकदमा किया गया। क्योंकि उनकी कहानियों ने रिश्तों से लेकर मजहबी कट्टरता को पूरी तरह से नंगा किया था।
11 मई 1912 में लुधियाना के समराला में जन्में सआदत हसन मंटो का 18 जनवरी 1955 में पाकिस्तान के लाहौर में निधन हो गया।
मंटो की मशहूर रचनाएं
टोबा टेक सिंह (लंबी कहानी), मंटो के अफसाने, अफसाने और ड्रामे, स्याह हाशिए, बादशाहत का खात्मा, खाली बोतलें, धुआं, ठंडा गोश्त, लाउड स्पीकर, पर्दे के पीछे, शिकारी औरतें, काली सलवार, शैतान, खोल दो, बगैर इजाजत, रत्ती, माशा तोला, बू, ऊपर, नीचे और दरमियां।