हिंदी के प्रसिद्ध लेखक एवं संपादक प्रेम भारद्वाज का पिछले सोमवार की रात अहमदाबाद में निधन हो गया। उनका निधन ब्रेन हेमरेज की वजह से हुआ। वह 55 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से कैंसर से भी पीडि़त थे। कुछ साल पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया था। बताया जाता है कि उनकी कोई संतान नहीं थी।
बिहार के छपरा जिले के विक्रम कौतुक गांव में प्रेम भारद्वाज का जन्म हुआ था। प्रेम भारद्वाज भवन्ति, पाखी और संडे पोस्ट के संपादक रहे हैं। उनके दो कहानी संग्रह ‘इंतजार पांचवें सपने का’ और ‘फोटो अंकल’ प्रकाशित हुए थे। उनकी कहानियों पर नाटक का मंचन भी किया गया था। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनके संपादकीय काफी चर्चा में रहते थे।
प्रेम भारद्वाज के संपादकीय पर एक पुस्तक ‘हाशिये पर हर्फ’ भी प्रकाशित की गई थी।
उन्होंने हिंदी के बड़े लेखक नामवर सिंह, हंस के संपादक राजेन्द्र यादव, लेखक ज्ञान रंजन और विनोद कुमार शुक्ल पर पाखी के विशेष अंक भी निकाले थे। वे पिछले 20 वर्षों से दिल्ली में रह रहे थे। बिहार के पटना विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए करने के बाद वह दिल्ली आ गए और यहीं पत्रकारिता करने लगे।
उनके असमय निधन की खबर सुनते ही सोशल मीडिया पर कई लेखक और कवि दुखी हो गए। साहित्य बिरादरी ने ने उन्हें अपने-अपने तरीके से श्रद्धाजंलि दी।
सवाल दहकते रहेंगे
लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने लिखा, ‘प्रेम भारद्वाज जी का असमय जाना दुख में छोड़ गया। एक आवाज़ जो सवाल करती थी, शांत हो गई। सवाल फिर भी दहकते रहेंगे, नमन’
हिंदी के लिए बड़ी क्षति
लेखिका रश्मि भारद्वाज ने लिखा, ‘प्रेम भारद्वाज जी का असामयिक निधन हिंदी साहित्य के लिए बड़ी क्षति है। हम सब उनके ज़िंदादिल व्यक्तित्व को हमेशा याद करेंगे। सादर नमन। आज उनके सम्मान में हमें होली का उत्सव बहुत सादा ही रखना चाहिए’
ये दुनिया अगर मिल भी जाए…
कवियत्री अंजू शर्मा ने लिखा, ‘प्रेम भारद्वाज नहीं रहे। उनसे लेखक संपादक का रिश्ता तो नहीं रहा पर एक बार उनका पूरा सम्पादकीय जरूर मेरी कविता पर आधारित रहा। उनके साथ की अनगिनत मुलाकातें और आयोजनों में सहभागिता याद आ रही है। हमेशा वे मुझे या मैं उन्हें छेड़कर चलती थी। एक खुशमिजाज, हंसते बोलते, विद्वान और सजग व्यक्ति का एकाएक परिदृश्य से यूं गायब हो जाना अजीब सी विरक्ति से भर रहा है। ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है। सब ठाठ धरा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा। विनम्र श्रद्धांजलि प्रेम जी’
वे बहुत जल्दी चले गए…
लेखक और कवि आशुतोष दुबे ने अपने फेसबुक पर लिखा, ‘प्रेम भारद्वाज से कोई निकटता या घनिष्ठता नहीं थी। कभी मुलाक़ात भी नहीं हुई। एक सजग सम्पादक जिस तरह अपने समय मे लिखे जा रहे पर नज़र रखता है,वह उनके पास बहुत खूब थी। ऐसी नज़र उनके अलावा प्रभाकर श्रोत्रिय और प्रेमशंकर शुक्ल के पास देखी है जो वैचारिक पूर्वग्रह के बगैर प्रतिभा पर एकाग्र हो। वे कविताएं मांगते थे; विशेष प्रसंगों में लेख आदि भी, जो कभी भेज पाया, कभी नहीं। अंतिम बार उन्होंने पिछले साल दिसम्बर में भवन्ति के लिए साग्रह कविताएं ली थीं लेकिन उसके प्रकाशन से पहले ही वे चले गए।
एक बार जब उन्होंने कविताओं के लिए कहा, तो उन्हें तो नहीं भेज पाया लेकिन उस समय फ़ेसबुक पर आ रहे अम्बर पांडे के उपन्यास 'विषय विषामृत' के 'पाखी' में धारावाहिक प्रकाशन के लिए अपनी तरफ़ से ही उन्हें सुझाव दिया। उसके बाद अम्बर से बात की। प्रेम जी तत्काल सहमत हुए। दो किस्तें छपीं भी, जिसमें से भी दूसरी शायद समय पर नहीं पहुंची। उसके बाद लेखक उदासीन हो गए और आगे इसका प्रकाशन 'पाखी' में नहीं हुआ। इस बात को लेकर अम्बर से मेरी नाराज़गी आज तक है। ख़ैर, इस सब के बावजूद प्रेम जी के प्रेम में कोई कमी नहीं आई। अपना स्नेह सम्पर्क उन्होंने बनाए रखा। राजेन्द्र यादव के बाद एक सजग विचारशील सम्पादक के रिक्त स्थान को उन्होंने अपने संपादकीयों से काफ़ी कुछ भरने की दिशा में काम किया था। वे बहुत जल्दी चले गए। कृतज्ञतापूर्वक स्मृति नमन!