इंदौर। इंदौर में तीन दिवसीय लिटरेचर फेस्टिवल रहेगा। 26, 27 और 28 नवंबर को नईदुनिया के प्रिंट सहयोग के साथ हेलो हिंदुस्तान द्वारा आयोजित सृजनकर्ताओं के इस महाकुंभ 'इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल' की शुरुआत 26 नवंबर से गांधी हाल परिसर में हुई। फेस्टिवल में 'विचारों में पक्षपात' इस विषय पर आनन्द रंगनाथन, डॉ. सरिता राव और सद्गुरु शरण अवस्थी के बीच चर्चा हुई।
लोग तो यही जानते हैं या उन्हें बताया गया है कि चाचा नेहरू तो आज़ादी के लिए लड़े हैं, साल 2014 के पहले तो देश में सबकुछ अच्छा था। कहीं कुछ ग़लत नहीं था। सारे नेता अच्छे थे। कोई करप्ट नहीं था। यही विचारो में पक्षपात है, यही एजेंडा है, यही सिलेक्टिव नैरेटिव है।
यह बात आनंद रंगनाथन ने दूसरे सेशन में कही। उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों को वही सब बताया गया जो उनके बारे में अच्छा-अच्छा था। लेकिन ये नहीं बताया गया कि उन्होंने लोगों को जेल में डाला, इमरजेंसी लगाई गई। लेकिन यही सब जब 2014 के बाद होता है और वह भी देश की सुरक्षा के लिए तो यह इन टॉलरेंस हो जाता है।
रंगनाथन ने कहा, ज़ाकिर नायक मेरा हीरो है, लोग उसे विलेन मानते हैं, लेकिन वो मेरे लिए इसलिए हीरो है क्योंकि उसने मेरी आँखें खोली। अब धर्म से डर लगने लगा है क्योंकि धर्म के नाम पर गुमराह किया जा रहा है।
- फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म हैं उसे कितना प्रभावित कर रहे हैं देश की शांति को?
जब भी हम ग्रे में जाते है तो अपनी गिल्ट को दूसरे पर थोप देते हैं। इसलिए मैं ग्रे आदमी नहीं हूं। मैं या तो ब्लेक हूँ या व्हाइट। इसलिए इसी तरह सोचा जाना चाहिए कि क्या ऑफेंस है और क्या नहीं।
जहाँ तक ट्विटर की बात है तो लेफ्टिस्ट ही फैसला कर रहे हैं कि किसे प्रतिबंध करना है किसे नहीं। जब वे ही लोग, जो लेफ्टिस्ट हैं तो जाहिर है देश की सुरक्षा को प्रभावित करेगा ही।
आपको अखलाक का नाम याद होगा, जुनैद का होगा, फ़ारुख का नाम याद होगा, लेकिन कई हिन्दू लोग मॉब लिंचिंग में मारे गए, उनका नाम किसी को याद नहीं है, क्यों? क्योंकि यहाँ ऐसा दिखाया जा रहा है कि सिर्फ एक ही धर्म के लोग पीड़ित हैं।
इस वक्त जो ट्विटर या कोई दूसरा सोशल मीडिया फैला रहा है उसे ही सच माना जा रहा है। और ट्विटर के नैरेटिव को ही हज़ारों और लाखों लोग सच मान रहे हैं। तो आनंद रंगनाथन की किसी एक सच बात को कोई क्यों सच मानेगा? सच तो वही माना जाएगा जिसे ज्यादा से ज्यादा लोग मांग रहे हैं। इसे कैसे रोका जाए? इसलिए मैं तो कहता हूं कि इसे रोका ही नहीं जाना चाहिए।
आनंद रंगनाथन, डॉ. सरिता राव और सद्गुरु शरण अवस्थी के सवालों के जवाब दे रहे थे।