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असम के चाय बागान की कहानी इसराइली लेखिका की जुबानी

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चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी में रहे एक सैन्य अधिकारी की बेटी और एयरहोस्टेस के रूप में सेवाएं दे  चुकी इसराइली लेखिका सोफी जुदा चाय असम चाय बागानों  के लिए अ‍परिचित नहीं हैं। उनके नए उपन्यास की पृष्ठभूमि में पूर्वी भारत के चाय के बागान ही हैं।
उनकी नई किताब 'विक्टर टी एस्टेट' इन चाय बागानों की सुगंध, रंग और आवाज को जीवंत  करने के साथ-साथ वहां के जटिल नियमों और बाधाओं को भी बयां करती है। पालिंप्सेस्ट द्वारा प्रकाशित 'विक्टर टी एस्टेट' को सोफी जिंदगी की वास्तविकता का जश्न बताती हैं।
 
यह उपन्यास 20वीं सदी में पूर्वी हिमालय में चाय बागान की जिंदगी के इर्द-गिर्द बुना गया है। यह उपन्यास 'चंदा' नामक एक साहसी महिला की कहानी है, जो अपने प्रेमी के साथ रहने के  लिए अनिश्चितताओं को अपनाती है और बदनामी का जोखिम उठाती है। वह सामाजिक नियमों को चुनौती देने के कारण भारी परेशानियां और नुकसान उठाती है लेकिन अंत में उसे अपने संकल्प पर अड़े रहने के लिए सराहा जाता है।
 
पुणे में जन्मी सोफी उस समय महज 13 साल की थीं, जब उन्होंने चाय बागानों के बारे में सुना। वे इस कहानी के बारे में लिखना चाहती थीं।
 
सोफी ने कहा कि हालांकि मैं नहीं मानती थी कि मेरी कृति प्रकाशित हो सकती है। मैंने 50 साल की उम्र के बाद रचनात्मक लेखन का कोर्स किया। मैंने इसके बारे में एक लघुकथा लिखी। मेरे प्रोफेसर ने कहा कि यह एक उपन्यास लायक सामग्री है, न कि लघुकथा के लायक। तब मैंने इस पर शोध करने के बारे में सोचा। मैंने इसे 7 बार 7 अलग-अलग नजरियों से लिखा और इसके लिए 7 अलग-अलग शीर्षक रखे थे।(भाषा)

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