Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Flashback 2019: सदी की 5 दलित लेखिकाएं जिन्‍होंने अपनी कहानी दुनिया को सुनाई

हमें फॉलो करें Flashback 2019: सदी की 5 दलित लेखिकाएं जिन्‍होंने अपनी कहानी दुनिया को सुनाई
webdunia

नवीन रांगियाल

, शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019 (15:47 IST)
हिन्दी साहित्‍य ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है, स्‍थापित लेखकों के अलावा पिछले एक दशक में नए लेखकों ने भी साहित्‍य में अपनी जगह आरक्षित की है। लेकिन दलित लेखिकाएं बडी पहचान से काफी दूर है, बावजूद इसके दुख, भेदभाव और तकलीफ झेलकर दलित लेखिकाओं ने समाज को नई दिशा दिखाने का काम किया है। बात कर रहे हैं ऐसी 5 दलित महिला लेखिकाओं की जिन्‍होंने अपनी कहानी दुनिया को सुनाई है।
उर्मिला पवार
उर्मिला पवार समाज को आईना दिखाने वाली कथाकार रही हैं। उनकी आत्मकथा- आयदान ने समाज के लिए कुछ ऐसा ही काम किया था। इस वजह से वो चर्चा में रहीं। उन्होंने न केवल एक दलित महिला होने के अपने अनुभवों पर लिखा है, बल्कि जाति और लिंग के मुद्दों के बारे में लघु कथाएं भी लिखी। वे अपने लेखन से ही चर्चा में रहीं हैं।
अनीता भारती
अनीता भारती एक प्रमुख कवि, लेखक और एक्‍टिविस्‍ट भी हैं। उन्‍होंने हिंदी साहित्य में दलित महिलाओं के नजरिए को बखूबी दर्शाया है। वे दलित और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता हैं। उन्होंने हाल ही में 65 कवियों का कविता संग्रह, ‘यथास्थिति से टकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुडी कविताएं’ का संपादन और प्रकाशन किया है। उनका एक और महत्वपूर्ण योगदान है- सामाजिक क्रांतिकारी गबदू राम बाल्मीकि की जीवनी। अनीता को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
पी. शिवकामी
पी. शिवकामी एक प्रशंसित तमिल दलित लेखिका हैं। शिवकामी ने दलित और नारीवादी विषयों पर केंद्रित चार प्रशंसित उपन्यास लिखे हैं। उनमें से एक, ‘गृप ऑफ़ चेंज’ शिवकामी द्वारा स्वयं अंग्रेजी में अनुवादित किया गया है। वह हर मास ‘पुधिया कोडंगी’  संपादित करती है जिसे वह 1995 से प्रकाशित कर रही है। उनका दूसरा उपन्यास आनंदयी जल्द ही पेंगुइन द्वारा अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित किया जाएगा।
शांताबाई कांबले
कांबले एक मराठी लेखिका एवं दलित कार्यकर्ता हैं। वह आत्मकथा लिखने वाली प्रथम लेखिका हैं। कांबले ने ‘माज्य जमालची चित्तरथा’ में अपने जीवन से प्रेरित कहानी से दलित समाज में जन्मी नाज़ा का संघर्ष, कक्षा, जाति और उत्पीड़न का उल्लेखन किया है। इस पुस्तक को मुंबई विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। सोलापुर के महार दलित परिवार में जन्मी, शांताबाई को पढाई से वंचित कर दिया था। लेकिन वे कक्षा के बहार बैठकर पढ़ती थी। शांताबाई जाति के अत्याचार सहने वाले लोगों की वक़ालत करने वाली प्रसिद्ध दलित कार्यकर्ता है।
कौसल्या नंदेश्वर बैसंत्री
कौसल्या बैसंत्री की ने साल 1999 में आत्मकथा ‘दोहरा अभिशाप’ लिखी थी। दलित समाज में महिला जीवन के तमाम संघर्षों का उल्लेख करती है। यह आत्मकथा उनके व उनके मां-बाप के संघर्षों से भरे जीवन का चित्रण करती है। उन्होंने दलित समाज की अच्छाई बुराई सभी का विवरण अपनी आत्मकथा में दिया है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Astrology Yogas : 5 शानदार राजयोग जो बना देते हैं रंक को राजा, कहीं आपकी कुंडली में तो नहीं