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मसि कागद छुयो नहीं कलम गही नहिं हाथ

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सुशील कुमार शर्मा

* अच्छा साहित्य लेखन कैसा हो?


 
अच्छा साहित्य कैसा हो? कैसे लिखा जाए? इस पर इतनी मत-भिन्नताएं हैं कि किसी एक साहित्य को श्रेष्ठ मानकर उसका अनुसरण कर कह देना कि भाई ये सर्वश्रेष्ठ साहित्य है, आपको ऐसा लिखना चाहिए सिर्फ अल्पबुद्धि का परिचायक होगा। लेकिन इसके इतर संसार के हर शब्द से साहित्य के ही स्वर निकलते। कुछ मूलभूत बातें हैं, जो अच्छे और दिल में उतरने वाले साहित्य के सृजन की मूलाधार हैं। शब्द साहित्य का ज्ञान जब आत्मा में परिध्वनित होकर कागज पर शब्द का रूप लेता है तो वह सर्जन काव्य कहलाता है।
 
साहित्य का सृजन आत्माभिव्यक्ति से शुरू होकर देश, काल, समाज, संस्कृति, प्रकृति, मानव चेतना, समग्र सृष्टि के अंतस से गुजरकर कालजयी रचना के रूप में परिणित होता है। किसी भी विधा की रचना के लिए आत्माभिव्यक्ति और कल्पनाशीलता प्रमुख होते हैं। 
 
किसी दूसरे की रचना पर भरोसा करने के बजाए अपने व्यक्तिगत अनुभवों, आदर्शों और भावनाओं को अभिव्यक्ति दें। अपने मन में आदर्श पाठक रखें और यह सुनिश्चित करें कि आप अपने आपको तदनुसार प्रस्तुत करने की कोशिश करें तथा अपने आपसे यह जरूर पूछें कि आपकी रचना आपके दिल के कितने करीब है और पाठकों को यह दिलचस्प और प्रभावित करने के लायक है कि नहीं? अच्छा लेखक बनने का पहला चरण अच्छा पाठक बनना है। इस तथ्य को पूरी गंभीरता के साथ समझते हुए लेखक को पढ़ने का भी सलीका सीख लेना चाहिए। 
 
गद्य लेखन- प्रभावशाली गद्य लेखन साहित्यकार के स्तर को पाठक के समक्ष प्रदर्शित करता है। प्रभावशाली गद्य लेखन के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
 
1. सर्वप्रथम प्रासंगिक विषय का चयन बहुत महत्वपूर्ण है। 
2 लेखक को पाठकों के मिजाज और साहित्यिक स्वाद का ध्यान रखना चाहिए। 
3. प्रभावशाली लेखन के लिए निरंतर अध्ययन आवश्यक है। 
4. विषय से संबंधित तथ्यों की खोज। 
5. विषय से संबंधित तथ्यों का प्रारूप तैयार करना। 
6. प्रारूप का संक्षेपीकरण करना। 
7. प्रारूप का विशिष्टीकरण करना। 
8. अंतिम प्रारूप को काम से कम 3 बार पढ़ना
9. व्याकरण और वर्तनी की अशुद्धियों को सुधारना। 
 
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पद्य का लेखन- गद्य यदि साहित्य का मोती है तो पद्य साहित्य का हीरा है। कविता में एक सहज आवेग-प्रधान होता है, कविता का अपना एक आकाश होता है और शब्द उस आकाश के सितारे, संवेदना चांद और पाठक सूरज होता है। कविता बनाई नहीं जाती, वह तो बन जाती है। कविता लिखने के लिए साहित्यिक शब्दों का होना जरूरी नहीं है। इसके लिए साधारण विषय, स्थान, व्यक्ति या विचार को नए ढंग से प्रस्तुत करने के लिए एक समझ आवश्यक है। गद्य लिखने के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। 
 
1. अपने चुने हुए विषय को जानें, उससे जुड़ें।
2. घिसे-पिटे शब्दों या मुहावरों (cliches) का कम से कम प्रयोग किया जाए।
3. कविता को भावुकता में बहकर नहीं लिखना चाहिए।
4. कल्पनाशीलता का अधिकतम प्रयोग किया जाना चाहिए।
5. रूपक (Metaphore) एवं उपमाओं (Similies) का प्रयोग प्रभावशाली कविता में होता है। 
6. सार शब्दों (Abstract) की जगह ठोस (concrete) शब्दों का प्रयोग प्रभावशाली पद्य में होता है। 
7. सामान्य को असामान्य में बदलें।
8. अत्यंत सतर्कता के साथ लय का प्रयोग करें।
9. विधा में प्रयुक्त व्याकरण एवं मात्राओं का ध्यान रखें।
10. अपनी लिखी हुई कविता को बार-बार पढ़ें और वर्तनी की अशुद्धियां सुधारें।
 
अच्छा लेखन किसी को आश्चर्यचकित करना नहीं, बल्कि पाठक की जिज्ञासा को अंत तक बनाए रखकर उसको शांत करना है। आश्चर्यचकित करना एक क्षणिक उत्तेजना पैदा करना है जबकि प्रत्याशा पाठक को अंत एक विषय से जोड़े रखती है एवं रचना को सार्थकता प्रदान करती है। 

पाठक को रचना से जोड़े रखने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
 
1. पाठक को विषय की सार्थकता से परिचय कराना। 
2. पाठक की भावनाओं का सम्मान करना। 
3. विषय को ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता के साथ प्रस्तुत करना। 
4. विषय एवं भावों की स्पष्टता होनी चाहिए। 
5. पाठक से ज्यादा तादात्म्य स्थापित नहीं करना चाहिए एवं उसकी समझ पर विश्वास करना चाहिए। 
 
बदलते परिवेश में रचनाओं और लेखन प्रक्रिया के प्रति दृष्टिकोण भी बदला है। सर्जनात्मक लेखन के लिए अभ्यास की अनिवार्यता है। कविता में नवीनता के समावेश के साथ प्रतीकात्मक भाषा और बिम्ब का इस्तेमाल कविता को सशक्त एवं प्रभावशाली बनाता है। 
 
अच्छे लेखन के सूत्रों में सरल एवं उपयुक्त शब्दों के प्रयोग, संप्रेषणीयता, सरलता, विषय प्रतिपादन में सक्षमता, लेखन से पूर्व लेखक के मन में विषय की स्पष्टता, शब्द-भंडार के विकास, शब्दों और वाक्यों के कुशल प्रयोग, अनावश्यक शब्द प्रयोग से बचने, मुहावरों, कहावतों व अलंकारों के सटीक प्रयोग के महत्व को अपने लेखन में उतारकर लेखन को उच्चस्तरीय शैली के रूप में प्रतिस्थापित कर सकते हैं। 
 
अच्छी भाषा के अभाव में अनुभवी, ज्ञानी और सुधी व्यक्ति भी लेखन में प्रवृत्त नहीं हो पाता है। लेखक बनने के क्रम में उपयोगी 5 सूत्रों यथा- अध्ययन, श्रवण, चिंतन, निरीक्षण और अभ्यास को पूरे विश्वास के साथ रूपायित किया जाना चाहिए। 
 
आज के साहित्य में स्त्रियों, रिश्तों, राजनीति, सामाजिक विद्रूपों और न जाने कितने अपरूपों के कौतुकभरे चित्र खींचने के हमारे ललित सुखों को हवा देने वाली रचनाओं का बोलबाला चल रहा है। कौतुक व विद्रूप भरे चित्रांकन ही मजेदार साहित्य बन चुके हैं। क्‍या नेतृत्‍वकारी साहित्‍य व समाज इसकी इजाजत दे रहा है? साहित्य सिर्फ साहित्य हो और साहित्यकार जाति, वर्ग व पंथ से परे महज साहित्यकार हों, यही साहित्य की और साहित्यकार की पहचान होना चाहिए। 


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