Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

भोपाल गैस त्रासदी पर कविता : वो काली रात

Advertiesment
हमें फॉलो करें भोपाल गैस त्रासदी पर कविता : वो काली रात
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

उस काली रात में
हवा में उड़ता जहर
अंधाधुंध भागते पैर
कटे वृक्ष की तरह
गिरते लोग
भीषण ठंड में
सांसों में अंदर
घुलता जहर।
 
हर कोई नीलकंठ
तो नहीं हो सकता
जो निगल ले
उस हलाहल को
रोते-बिलखते बच्चे
श्मशान बनती
भोपाल की सड़कें
बिखरे शव।
 
और लहराता
एंडरसन
किसी प्रेत की तरह
अट्ठहास लगाता
उड़ गया
हमारे खुद के
पिशाचों की मदद से
पीछे छोड़ गया
कई हजार लाशें।
 
आर्तनाद, चीखें
अंधे, बहरे
चमड़ी उधड़े चेहरे
लाखों मासूमों को
जो आज भी 
भुगत रहे हैं
उन क्षणों को
जब एक जहर
उतरा था
भोपाल की सड़कों पर।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

गुरु पुष्य शुभ संयोग : अवसर ना जाने दें, सौभाग्य को आने दें