Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

23 सितंबर जयंती विशेष : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की खास कविताएं

हमें फॉलो करें 23 सितंबर जयंती विशेष : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की खास कविताएं
23 सितंबर को हिंदी साहित्य के लेखक, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की जयंती मनाई जाती है। संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी और राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत कविताओं के लेखन के कारण रामधारी सिंह दिनकर जी को क्रांतिपूर्ण बहुत लोकप्रियता मिली। यहां पढ़ें उनकी 6 लोकप्रिय रचनाएं...
 
1. कविता : राम, तुम्हारा नाम
 
राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,
 
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,
दुख से त्राण नहीं मांगूं।
 
मांगूं केवल शक्ति दुख सहने की,
दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया
अकातर ध्यानमग्न रहने की।
 
देख तुम्हारे मृत्यु दूत को डरूं नहीं,
न्योछावर होने में दुविधा करूं नहीं।
तुम चाहो, दूं वही,
कृपण हो प्राण नहीं मांगूं।

2. कविता : रोटी और आजादी
 
आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहां जुगाएगा?
मरभुखे ! इसे घबराहट में तू बेच तो न खा जाएगा?
 
आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं,
पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।
 
हो रहे खड़े आजादी को हर ओर दगा देनेवाले,
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेनेवाले।
इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है?
 
है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है?
झेलेगा यह बलिदान? भूख की घनी चोट सह पाएगा?
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा?
है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं, जुगाना भी,
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी।

3. कविता : पुनर्जन्म
 
जन्म लेकर दुबारा न जनमो,
तो भीतर की कोठरी काली रहती है।
कागज चाहे जितना भी
चिकना लगाओ,
जिन्दगी की किताब
खाली की खाली रहती है।
 
शुक्र है कि इसी जीवन में
 
मैं अनेक बार जनमा
और अनेक बार मरा हूं।
 
तब भी अगर मैं
ताजा और हरा हूं,तो कारण इसका यह है
कि मेरे हृदय में
 
राम की खींची हुई
अमृत की रेखा है।
 
मैंने हरियाली पी है,
पहाड़ों की गरिमा का
ध्यान किया है,
बच्चे मुझे प्यारे रहे हैं
और वामाओं ने राह चलते हुएमुझे प्रेम से देखा है।
 
पर्वत को देखते-देखते
आदमी का नया जन्म होता है।
और तट पर खड़े ध्यानी को
समुद्र नवजीवन देने में समर्थ है।
 
नर और नारी
जब एक-दूसरे की दृष्टि में
समाते हैं,
उनका नया जन्म होता है।
पुनर्जन्म प्रेम का पहला अर्थ है।
 
पुनर्जन्म चाहे जितनी बार हो,
हमेशा जीवित रहने से
हमें डरना भी चाहिए।
 
दोस्ती, बंधन और लगाव की भी
सीमा होती है।
अपने अतीत के प्रतिहर रोज हमें थोड़ा
मरना भी चाहिए।

4. कविता : कलम, आज उनकी जय बोल
 
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
 
जो अगणित लघु दीप हमारे
 
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
 
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
 
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के 
सूर्य चंद्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल... 

5. कविता : शरद
 
औ शरत अभी क्या गम है
तू ही वसंत से क्या कम है
है बिछी दूर तक दूब हरी
हरियाली ओढ़े लता खड़ी
 
कासों के हिलते श्वेत फूल
फूली छतरी ताने बबूल
 
अब भी लजवंती झीनी है
मंजरी बेर रस भीनी है
 
कोयल न (रात वह भी कूकी, तुझ पर रीझी, बंसी फूंकी)
कोयल न कीर तो बोले हैं कुररी मैना रस घोले हैं
कवियों की उपम की आंखें
खंजन फड़काती है पांखें
 
रजनी बरसाती ओस ढेर
देती भू पर मोती बिखेर
नभ नील स्वच्छ सुंदर तड़ाग
न शरत् न, शुचिता का सुहाग
 
औ। शरत् गंग लेखनी, आह! शुचिता का यह निर्मल प्रवाह
पल भर निमग्न इसमें हो ले
वरदान मांग, किल्वष धो ले।

6. कविता: चांद
 
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चांद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
 
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूं?
मैं चुका हूं देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चांदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
 
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
 
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चांद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
 
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूं,
और उस पर नींव रखता हूं नए घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूं।
 
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
 
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिए, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे। 

webdunia
Moon poem 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नवरात्रि फलाहार : उपवास में बनाएं कच्चे केले की चटपटी टिकिया