Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

स्मृतियां भी मैं, जंगल भी मेरे ही भीतर!

हमें फॉलो करें स्मृतियां भी मैं, जंगल भी मेरे ही भीतर!
webdunia

श्रवण गर्ग

, गुरुवार, 4 अगस्त 2022 (17:04 IST)
नहीं टूटता कुछ भी एक बार में
न अखरोट, न नारियल,
न पहाड़ या दिल पिता का!
 
दरकती है सबसे पहले
कोई कमजोर चट्टान
देती है संकेत ढहने का
पूरा का पूरा पहाड़!
 
हवा का एक तेज झोंका
या आकाश से टूटता पानी
बहा ले जाता है चट्टान अपने साथ
छूट जाती हैं अंगुलियां जैसे
भीड़ में हाथों से पिता के!
 
नहीं दिखते बहते हुए आंसू
टूटता है जब कोई कोना मन का
निकल जाते हैं तभी पिता बाहर
कहकर टहलने का
दूर, बहुत दूर कहीं-
स्मृतियों के घने जंगल में!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भाजपा को भूलिए! मुसलमानों की ज़रूरत किसी भी दल को नहीं?