- डॉ. रूपेश जैन 'राहत'
पूछिए मत क्या बवाल मचा रखा है
जाने उसने जबां पे क्या छुपा रखा है
इस माहौल में खामोश रहना अच्छा
बहस को जाने क्या मुद्दआ उठा रखा है
तमाम उम्र जिस मुल्क से प्यार किया
फिक्र है मुझे अजनबियों ने डरा रखा है
आसार नहीं कोई दिखता सुधरने का
इन हालातों की चिंता ने सता रखा है
नहीं पता किस मोड़ पे नज़ारे अच्छे हों
हम ने देखा चोरों ने पेट भर खा रखा है
कहां तक पहुंचे निगाह होश भी न रहा
हम चुप और मुद्दई ने घर सजा रखा है
कब तक रहेगा ये मौसम इस सफ़र में
'राहत' वतन-परस्तों ने देश बचा रखा है