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कविता : गणित जीवन का

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रामध्यान यादव 'ध्यानी'

गणित जीवन का 
जोड़ (+) सदा ऊपर ले जाए
एक-एक मिल भवन बनाए
 
गुणा (X) सकल गुणों की खान
पाने वाला बड़ा महान
 
करे घटाना (-) घर को खाली 
बिगड़ रही हालत है माली
 
भाग (/) सदा हिस्सा दर्शाए
अंतर मन में द्वंद्व मचाए
 
यही अंग जीवन के सरे,
भलि-भांति तुम समझो प्यार
 
रामध्यान यादव "ध्यानी"
वृक्ष हमें हैं जीवन देते
                       
मृत्यु को खोजते हैं
सरे दुःख को वे अपना
                       
आनंद हमें दे जाते हैं
उनकी रक्षा के खातिर
                       
मेरे भी कुछ हैं कर्तव्य
निजता के खातिर हम उनका 
नहीं करेंगे अब अपव्यय

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