-डॉ. रूपेश जैन 'राहत'
मैंने कभी सुना था
जीवन एक सुलगती हुई
सिगरेट के समान है।
काफी सोचने के बाद मैंने पाया
जिंदगी सिगरेट जैसे ही
समस्याओं से जूझकर
सुलगती रही है
अंत में सिगरेट के जैसे ही
जलकर खाक हो जाती है।
इसी सोच में सोचते-सोचते
मेरी सोच और गहरी होती चली गई
और मैंने सोचा कि
शहर में सिगरेट का चलन ज्यादा है
जबकि गांवों में बीड़ी का
अत: शहर के लोगों की जिंदगी
जलती हुई सिगरेट के जैसी
और गांव के लोगों की जिंदगी
बीड़ी के समान होती है।