हर दिन, हर पल, हर सांस तुझे दी,
प्रभु ने परम दुलार से।
मत जीना ओ! नादान,
जिंदगी जैसे मिली उधार से।।1।।
हिचकोले तो हैं जीवनसागर की,
यात्रा की सहज शर्त।
नाव बचानी है केवल,
अनघट घातक मझधार से।। 2।।
हर पल को जीवन से भरना है,
जीकर परम तमन्ना से।
कह सकें कि मैंने जिया जी भर,
जब भी जाएं संसार से।।3।।
बने जीवनादर्श राम की,
पुरुषोत्तम मर्यादा वहन।
और लोकनायक कान्हा की,
लीलामय श्रृंगार से।।4।।
परम दिव्य थी युति वह,
तुलसी की मानस भी हो गई अमर।
निर्मल बही कथा-गंगा,
राम पर शंकर के प्यार से।।5।।
हो निष्कपट समर्पण,
उक्त आदर्शों के प्रतिमानों में।
समृद्ध हो देश-समाज,
हमारे सार्थक जीवन-व्यवहार से।।6।।