रख दो
इन कांपती हथेलियों पर
कुछ गुलाबी अक्षर
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं
बादामी होता जीवन का व्याकरण,
चाहती हूं कि
उग ही आए कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव,
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें ...
मेरी हथेली की ऊर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता
इस 'रंगहीन' वक्त में....
वो जो तुम
शाम के कुंकुम चरणों पर
चढ़ा देते हो सिंदूरी रंग,
वो जो तुम
रात की हथेली पर
लगा आते हो गाढ़ा नीला रंग
वो जो तुम सुबह के कोरे कपोलों पर
सजा देते हो गुलाल मेरे संग
चाहती हूं कि
इन रंगों को रख दो मेरी हथेलियों पर
कि जब मैं निकलूं तपती हुई पीली दोपहर में अकेली
तो इन्हें छिड़क सकूं...दुनिया की कालिमा पर
मुझे इसी कैनवास पर तुम्हारे दिए रंग सजाना है
प्यार कितना खूबसूरत होता है
सबको बताना है...