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देवी गीत : विश्व हो माँ ! कल्याणकारी

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प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "

जो भी अपनी सुनाने व्यथायें

दूर से चल के मंदिर में आयें

दीजिये माता आशीष उनको

मन में जो गहरी आशा लगायें

दीन भक्तो को बस आसरा है कृपा की जगत जननी तुम्हारी

 

 

गाँव शहरों में गलियों सड़क में

उमड़ी है हर जगह भीड़ भारी

करके दर्शन व्यथायें सुनाने

आरती पूजा करने तुम्हारी

मन के भावों को पावन बनाता पर्व नवरात्र का पुण्यकारी

 

भजन की स्वर लहरियो से गुंजित

हो रहा प्यारा निर्मल गगन है

होम के धूम की गंध से भर

हर पुजारी का मन मगन है

माँ ! दो वर जिससे हो हित सबों का मान के प्रार्थनायें हमारी

 

जिनके मन में बसा है अंधेरा

माँ ! वहाँ ज्ञान का हो उजाला

जो भी हैं द्वेष दुर्भाव कलुषित

उनका मन होवे सद्भाव वाला

किसी का न कोई अहित हो नष्ट हों दुष्ट सब दुराचारी


जो भी अपनी सुनाने व्यथायें

दूर से चल के मंदिर में आयें

दीजिये माता आशीष उनको

मन में जो गहरी आशा लगायें

दीन भक्तो को बस आसरा है कृपा की जगत जननी तुम्हारी

 

 

गाँव शहरों में गलियों सड़क में

उमड़ी है हर जगह भीड़ भारी

करके दर्शन व्यथायें सुनाने

आरती पूजा करने तुम्हारी

मन के भावों को पावन बनाता पर्व नवरात्र का पुण्यकारी

 

भजन की स्वर लहरियो से गुंजित

हो रहा प्यारा निर्मल गगन है

होम के धूम की गंध से भर

हर पुजारी का मन मगन है

माँ ! दो वर जिससे हो हित सबों का मान के प्रार्थनायें हमारी

 

जिनके मन में बसा है अंधेरा

माँ ! वहाँ ज्ञान का हो उजाला

जो भी हैं द्वेष दुर्भाव कलुषित

उनका मन होवे सद्भाव वाला

किसी का न कोई अहित हो नष्ट हों दुष्ट सब दुराचारी


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