मृत्यु अटल सत्य
दाह शरीर में से
शेष हड्डियां और राख रहकर
हो जाती मानव मूर्ति विलिन
पंचतत्व में
मानव मृत्यु का
अनवरत चलते आ रहे क्रम से
क्षण भर आता वैराग्यता का बोध
जो समा जाता
हर एक स्मृति पटल पर
मृत्यु के सच को
अच्छाई /भलाई के विचारों पर
मृत मानव के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप
चिंतन करते मानव
श्मशान के बाहर आते ही
छाई वैराग्यता को
श्मशान में उठे धुंए की तरह
कर जाते है विलिन
कुछ समय तक
जिंदगी रुलाती रहती
किंतु नए मेहमान के आने पर
मिलान करती /खोजती
अपने एवं अपने पूर्वजो के चेहरों की आकृति
खुश हो जाती अब जिंदगी
देखते -देखते
फिर से जिंदगी बूढ़ी हो जाती
मृत्यु का क्रम अनवरत
मानव मूर्ति फिर होने लगती विलिन
क्षण भर की वैराग्यता
फिर से समा जाती
अस्थिर मन में
यही संकेत फिर से
दे जाता मृत्यु
अटल सत्य को