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हिन्दी कविता : सच के साथ
सच कहना
गुनाह तो नहीं है
रूठते लोग।
मन में आंधी
घुमड़ते विचार
कब रुके हैं।
सत्य बोलना
बहुत कठिन है
रहो अकेले।
जब भी लिखा
कुछ न लिख पाया
सच के सिवा।
मिट्टी का दीया
अंधेरे में प्रकाश
छोटी-सी आस।
खिलाफ मेरे
सारा जहां खड़ा है
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